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( ३८ ) का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है, जिससे ग्वालियर की तत्कालीन राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था, धार्मिक स्थिति आदि का पता चलता है। डॉ. राजाराम जैन ने इनका समय वि० सं० १४५७-१५३६ ( १४००. १४७९ ई०) माना है।" १४. पासणाहचरिउ-असवाल कवि
अपभ्रंश भाषा में लिखित यह ग्रन्थ १३ सन्धियों में विभक्त है। कथावस्तु परम्परागत है। इसकी एक ही हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है, जो अग्रवाल दि० जैन मन्दिर मोतीकुटरा, आगरा में है ।६७ काव्यत्व की दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व नहीं है। ___ असवाल कवि गोलाराड वंशीय लक्ष्मण के पुत्र थे। इस काव्य में अस्वाल ने मूलसंघ बलात्कारगण के आचार्यों का उल्लेख किया है। अतः जान पड़ता है कि ये इसी से सम्बद्ध थे। ग्रंथरचना चौहानवंशी राजा पृथिवीसिंह के राज्यकाल में वि० स० १४७९ ( १४४२ ई० ) में हुई थी। १५. पासपुराण-तेजपाल
यह पद्धडिया छन्द में लिखित एक खण्डकाव्य है, जो अद्यावधि अप्रकाशित है। इसकी हस्तलिखित प्रतियाँ भट्टारक हर्षकीर्ति भण्डार, अजमेर ९, बड़े घड़े का मन्दिर, अजमेर तथा आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में हैं। बड़े घड़े का मन्दिर, अजमेर तथा आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर की प्रति का लेखनकाल क्रमशः वि० स० १५१६ और १५७७ ( १४५९ एवं १५२० ई० ) है ।
कवि तेजपाल मूलसङ्घ के भट्टारक रत्नकीर्ति, भुवनकीति और विशालकीर्ति की आम्नाय से सम्बन्धित थे। इन्होंने पासपुराण की रचना मुनि पद्मनन्दि के शिष्य शिवनन्दि भट्टारक के संकेत से वि० सं० १५१५ (१४५८ ई०) में की थी।७१ इस आधार पर वि० सं० १५१६ में लिखित बड़े घड़े का मन्दिर, अजमेर की हस्तप्रति उसी समय की लिखी प्रतीत होती है। इस प्रकार कवि का समय ईसा की पंद्रहवीं शताब्दी है। १६. पार्श्वनाथचरित ( पाश्र्वनाथ काव्य )-पद्मसुन्दरगणि
सप्तसत्मिक इस काव्य में तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ का चरित्र ग्रथित है। कथानक परम्परागत ही है । पद्मसुन्दरगणि आनन्दमेरु के प्रशिष्य और
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