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इनमें से कुछ ग्रंथ सम्भवतः श्री अगरचंदजी नाहटा के व्यक्तिगत संग्रह में उपलब्ध हैं। मैं इस दिशा में सतत प्रयत्नशील हूँ तथा खोज करने पर और भी अनेक आयुर्वेद सम्बन्धी ग्रन्थों की जानकारी प्राप्त हुई है। किंतु इस दिशा में सतत अनुसंधान और पर्याप्त प्रयत्न अपेक्षित है। उपर्युक्त विवेचन से यह तथ्य तो स्पष्ट है कि जैनाचार्यो' ने भी अन्य आचार्यों की ही भांति आयुर्वेद साहित्यसृजन में अपना अपूर्व योग दान दिया है। अब आवश्यकता इस बात की है कि अनुसन्धान के द्वारा उस विलुप्तविशाल साहित्य को प्रकाश में लाकर आयुर्वेद साहित्य की श्रीवृद्धि की जाय और आयुर्वेद की दृष्टि से उसका उचित मूल्यांकन किया जाय । इससे आयुर्वेद जगत् में निश्चय ही जैनाचार्यो को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त होगा।
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