Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 70
________________ ( ६८ ) और राजा आदि समाविष्ट हैं । (२) लौकिक आदि के प्रसंगों को उपजीव्य बनाकर चलनेवाली रचना यथा अभयकुमार श्रेणिक रास । 'रास' नामक रचनाएँ नृत्य सहित गाई जाती थी और उनका सस्वर पाठ होता था। पंद्रहवीं शती तक जैन रासों का स्वरूप निर्माण हो रहा था। तेरहवीं शती में विरचित रासों में धार्मिक स्थलों की प्रशस्ति होती थी। चौदहवीं शती के रासों में पौराणिक और काल्पनिक कथाओं का समावेश होने लगा। पंद्रहवीं शती के रास के वस्तुतत्त्व में लोककथाएँ निजधरी कथाएँ और जनविश्वास प्रचुर मात्रा में प्रविष्ट हए। ये रचनाएँ वस्तु संगठन, वर्णन विस्तार, शैली तथा कथानिरूपण की दृष्टि से प्रबन्ध की कोटि में आ जाती हैं। डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार जिस प्रकार 'विलास' नाम देकर चरित काव्य लिखे गए, 'रूपक' नाम देकर चरितकाव्य लिखे गए, 'प्रकाश' नाम देकर भी चरितकाव्य लिखे गए, उसी प्रकार 'रासो' या रासक नाम देकर भी चरितकाव्य लिखे गए।' देपाल ने 'चंदनबाला चउपई' को चरित्र कहा है । ७ 'जंबूस्वामी चउपई' का भी यही हाल है। 'जंबूस्वामी चउपई' (लि.सं. १५७४) में भगवान् महावीर के पट्टशिष्य गणधर सुधर्म प्रमुख शिष्य जम्बूस्वामी का चरित्र-चित्रण किया गया है। जम्बूस्वामी जैन धर्म के महामुनि हैं। उनके पश्चात् किसी भी श्रमण को निर्वाण पद प्राप्त नहीं हुआ। यौनावस्था में अनिच्छा होते हुए भी जम्बूस्वामी ने आठ कन्याओं का पाणिग्रहण किया। इतने में प्रभव चोर चोरी करने के हेतु प्रविष्ट हुआ। चोर समेत आठ पत्नियों को प्रतिबोधित करके सभी सुधर्म से दीक्षित होते हैं। _ 'चंदनबाला चउपई' (लि. सं. १५९०) में चंदनबाला का चरित्रचित्रण किया गया है । जैन धर्म में सती श्राविकाओं में चंदनबाला का स्थान महत्त्वपूर्ण है । इसका कथानक भगवान् महावीर के जीवन से सम्बद्ध है। जैन आगमों से लेकर अद्यावधि चंदनबाला के विषय में विपुल साहित्य उपलब्ध होता है। देपाल ने परंपरागत कथा का अनुसरण किया है। ___ 'भीमसिंह राग' में दानवीर भीमसाह का संक्षिप्त चरित्र वर्णित है। वि. सं. १३७६ में दुभिक्ष के समय गुर्जर भीम शाह ने दान कर्म से अनेक ६. डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, पृ०६०-६१. ७. चंदणबाल चरित्र भण बूधिमान रसाल ।। १ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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