Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 46
________________ ( ४४ ) ५५. 'समीक्ष्य बहुशास्त्राणि श्रुत्वा श्रुतधराननात् । ग्रन्थोऽयं ग्रथितः स्वल्पसूत्रेणापि माया रसात् ॥ -पार्श्वनाथचरित्र, प्रशस्तिपद्य १५ ५६. इतिश्रीकालिकाचार्यसन्तानीयश्रीभावदेवसूरिविरचिते श्रीपार्श्वनाथचरित्रे ___ महाकाव्येऽष्टसर्गे भावा?......"वर्णतो नाम......। ५७. द्रष्टव्य, पार्श्वनाथचरित्र, प्रशस्तिपद्य ४-१४ ५८. 'श्रीपत्तनास्यनगरे रविविश्ववर्षे पार्श्वप्रभोश्वरितरत्नमिदं ततान ।'-पार्श्वनाथचरित्र, प्रशस्तिपद्य १४ ५९. वही, प्रस्तावना, पृ० २ ६०. जिनरत्नकोश, पृ० २३४० एवम् २३१ ६१. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृ० ३२९ ६२. भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० १५७-१५८. ६३. रावजी सखाराम दोशी शोलापुर से प्रकाशित ६४. द्र०, अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियां, पृ० १४६ ६५. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० २००-२०१ ६६. महाकवि रइधू के साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, पृ० १२० ६७. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोधप्रवृत्तियाँ, पृ० १४६ ६८. 'इगवीर हो णिव्वुई वुच्छराई सत्तरिसहुं चउसथवत्थराई । 'पच्छइंसिरिणिव विक्कमगयाइं एउणसीदीसहुँ च उदहसयाई। भावदतम एयारसि मुणेहु वरिक्केपूरिउ गंथु एहु । -अनेकान्त, वर्ष १३, किरण १० ( अप्रेल १९५५), पृ०२५२ ६९. वही, पृ० २११ ७०. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १४६ ७१. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० २१० ७२. जिनरत्नकोश, पृ० २४४ ७३. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० १२० ७४, वही, भाग ६, पृ०६७. ७५. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ३, पृ० ८३ ७६. मुनिश्री मोहनलालजी जैन ग्रन्थमाला, सरस्वती फाटक, वाराणसी, १९१६ ई० में प्रकाशिव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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