Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 51
________________ विपरीत जैन साहित्य में उसे सम्यक्त्व, नियम और योग से समन्वित तथा जितेन्द्रिय, ब्रह्मचारी, एक समय भोजन करनेवाला एवं अमलात्मा स्वीकार किया गया है। शम्बूक के द्वारा वर्ण धर्म व्यतिक्रम तथा तद्जन्य पाप और परिमाण में ब्राह्मण सुत की मृत्यु का प्रसंग जैनियों के द्वारा उपस्थित नहीं किया गया है और न ही शूद्र के तपाचरण को राज्य में अधर्म माना गया है। दोनों परम्पराओं में यह अन्तर विविध मान्यताओं तथा दृष्टिकोण वैभिन्य के कारण उपस्थित हुए हैं। वाल्मीकि और कालिदास में वर्ण व्यवस्था के प्रति सचेष्टा तथा आग्रह के अनेक सन्दर्भ देखे जा सकते हैं ।९ जैन साहित्य में भी बंभव, खत्तिय, वइस्स तथा सुदुद नाम के चार वर्णों का उल्लेख मिलता है किन्तु जात्यो. स्कर्ष अथवा जात्यापकर्ष के परिचायक सन्दर्भो का अभाव सा जैन साहित्य में है। रविषेण ने पद्मपुराण में किसी भी जाति को निन्दनीय नहीं स्वीकार किया है। यहाँ तक कि व्रतसंलग्न चाण्डाल भी ब्राह्मण की कोटि में परिगणित किया गया है। यही कारण है कि शम्बूक के द्वारा क्रियमाण तप की भर्त्सना जैनियों को अभीष्ट नहीं प्रतीत हुई। वाल्मीकि और उनके अनुयायियों तथा जैनियों के शम्बूक आख्यान में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि प्रथम परम्परा के अनुसार राम ने शम्बूक का वध किया था। किन्तु जैनियों के अनुसार लक्ष्मण ने। राम दोनों परम्पराओं में नायक के रूप में चित्रित हैं। जैनियों की व्यापक अहिंसा दृष्टि नायक राम के हाथों शम्बूक के तध को सहन नहीं कर सकी, अतः उन्होंने इस कार्य का कर्ता लक्ष्मण को बना दिया । शम्बूक आख्यान के प्रसंग में अन्य परम्पराओं का भी आलोडन अप्रासंगिक नहीं होगा। आनन्दरामायण १२ में शम्बूक की कथा निम्न रूप में उपलब्ध होती है 'राम ने तप क्रियमाण शूद्र शम्बक के पास पहुंचकर उसे वरदान दिया और शूद्रों की सद्गति हेतु गम नाम का जप और कीर्तन श्रेयस्कर प्रतिपादित किया। शूद्र के द्वारा यह पूछने पर कि कृषि कार्यो में व्यस्त रहकर उन्हें जप कीर्तन करने का समय नहीं मिलेगा, राम ने यह कह कर संतुष्ट किया कि शूद्र लोग एक दूसरे से मिलकर राम-राम कहेंगे तो उनका उद्धार हो जायेगा। तत्पश्चात राम ने शूद्र का वध कर डाला। इस कथानक में दो तथ्य विचारणीय हैं, प्रथम-शूद्रों के द्वारा कृषि कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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