Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ ( ४८ ) तथा उसके द्वारा अधर्माचरण का प्रसंग उपस्थित करना, ब्राह्मण नारद के द्वारा शुद्र की तपस्या को मृत्यु का कारण स्वीकार करना तथा राम अर्थात् क्षत्रिय शासक के द्वारा शूद्र का वध इत्यादि उल्लेख क्या साभि-. प्राय नहीं हैं ? वर्ण-व्यवस्था के नियमों का अनुपालन तथा ब्राह्मणों को सर्वोच्नता के सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने तथा व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करने के लिए शम्बूक आख्यान का कलेवर इन कवियों के द्वारा वणित किया गया। जैन साहित्य में भी शम्बूक आख्यान उपलब्ध होता है जिसके आधार रूप में विमलसूरिकृत पउमचरिय के कथानक को स्वीकार किया जाता है। इस ग्रन्थ के आधार पर शम्बूक का आख्यान निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है___ "रावण की बहन चन्द्रनखा तथा उसके पति खरदूषण से संबुक्क तथा सुन्द नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए थे। देवकुमारों के समान संबुक्क अत्यन्त शोभावान एवं समर्थ था। उसने सूर्यहास नामक खंग की प्राप्ति के लिए क्रौं चरवा नदी के किनारे तथा लवण-समुद्र के उत्तर स्थित भूक्षेत्र में स्वयं को तप में प्रस्तुत किया। उसकी प्रतिज्ञा थी कि सम्यक्त्व; नियम तथा योग से रहित जो भी व्यक्ति उसकी दृष्टि में आयेगा, उसका वध वह अवश्य करेगा। एक दिन लक्ष्मण भ्रमण करते हुए उस स्थान पर पहुँच गया और कान्तियुक्त सूर्य हास खंग को देकर उसकी तीक्ष्ण धार को परीक्षित करने का निश्चय किया । इस सन्दर्भ में उसने बॉस के संकुल को काट डाला और संकुल में तपःलीन संबुक्क का भी शिर कट गया । ६७८ ई० में आचार्य रविषेण द्वारा रचित पद्मपुराण में भी शम्बूक की कथा पउमचरियं के आधार पर उपलब्ध होती है। इस ग्रन्थ में संबुक्क को एक अन्न खाने वाला, निर्मल आत्मा का धारक, ब्रह्मचारी तथा जितेन्द्रिय कहा गया है। शेष कथा पउमचरियं की अनुकरण मात्र है। जैन ग्रन्थों में वर्णित शम्बक आख्यान वाल्मीकि द्वारा प्रस्तुत कथानक की अपेक्षा भिन्न मान्यताओं को अभिव्यंजित करता है। वाल्मीकि और कालिदास शम्बूक के अधःमुख होकर धूम्रपान के सेवन का उल्लेख करते हैं। यह परम्परा जन सामान्य की वस्तु नहीं थी। वाल्मीकि के अनुयायियों ने भी शम्बूक को गहित सिद्ध करने की चेष्टा की है। इसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90