Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 28
________________ ( २६ ) ६६. स्थानांग ४।३४६ ६७. अंगुत्तरनिकाय ४११० ६८. स्थानांग ४।३६० ६९. अंगुत्तरनिकाय ४११०३ ७०. उत्त० १।१५; धम्मपद १२।३ ७१. वही १११७; थेरीगाथा २४७ ७२. वही २।३, थेरगाथा २४६, ६८६ ७३. वही ४।१; अंगुत्तरनिकाय पृ० १५९ ७४. वही २।२५; सुत्तनिपात, व०८, १४।१८ ७५. वही ९।१४; जातक ५३९, श्लोक १२५; जातक ५२९, श्लोक १६ ७६. वही १९।१५; महावग्ग १।६।१९ ७७. वही २।३ भागवत० ११।१८।९ ७८. वही १११४ महाभारत शांतिपर्व २८७१३५ उत्त० २१३- शांतिपर्व २३४।११; उत्त० २।१९,२०-शांतिपर्व १२।१०, ९,१३; उत्त० ९।४०-शांतिपर्व २५८।५; उत्त० १३१२२-शांतिपर्व १७५। १८, १९; उत्त० १३।२५- शांतिपर्व ३२१७४; उत्त० १४।१५शांतिपर्व १७५।२०; उत्त० १४।१६,१७-शांतिपर्व १७५।३८; उत्त. १४।२१-शांतिपर्व १७५१७, २७७१७; उत्त०१४॥२२-शांतिपर्व १७५॥ ८; २७७.८; उत्त० १४।२३-- शांतिपर्व १७५१९, २७७१९; उत्त० १४॥ २४, २५-शांतिपर्व १७५।१०,११,१२, २७७५१०, ११, १२, उत्त. १४।४६-शांतिपर्व १७८९। ७९. उत्त० ९।४९-उद्योगपर्व ३९।८४, उत्त० १३।२३-उद्योगपर्व ४०।१५, १८; उत्त० १३।२४-उद्योगपर्व ४०।१७; उत्त० १३।२५-उद्योगपर्व ४०।१७; उत्त० २५।२९-उद्योगपर्व ४३१३५ । ८. उत्त० ९।४९-विष्णु पुराण ४।१०।१० ८१. उत्त० २०३६, ३७-गीता ६१५, ६; उत्त० २५।३१-गीता ४.१३, उत्त० ३२।१००-गीता २०६४ ८२. उत्त० ३२।२० शांकर भाष्य, श्वेता उप० पृ० २३ ८३. दशवै० १।१-धम्मपद १९६६ ८४. वही १२--धम्मपद ४।६ वही ८।३८-धम्मपद १७१३ ८५. वही २।१-संयुत्तनिकाय १।१।१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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