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( ३४ ) परिचय उल्लिखित होने से अन्धकाराच्छन्न नहीं है। ये हरयाणा के मूल निवासी थे । वहाँ से चलकर यमुनापार दिल्ली आये । वहीं पर अग्रवाल नहल साहु की प्रेरणा से उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की थी। यही कारण है कि दिल्ली का बड़ा ही रम्य वर्णन पासणाहचरिउ में हुआ है । विबुध श्रीधर की माता का नाम वील्हा और पिता का नाम बुधगोल्ह था । कवि ने पासणाहचरिउ की रचना वि० सं० ११८९ (११३२ ई०) में मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी रविवार को पूर्ण की थी। ७. पासणाहचरिउ--देवचन्द्र
प्रस्तुत काव्य में ११ सन्धियाँ और २०२ कड़वक हैं। इसका कथानक भी परम्पराप्राप्त है, जिसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पूर्वभवों सहित जीवन पर प्रकाश डाला गया है । ग्रन्थ अद्यावधि अप्रकाशित है। इसकी हस्तलिखित प्रति श्री पं० परमानन्दशास्त्री के निजी संग्रह में है। प्रति का लेखनकाल वि० सं० १५४९ (१४९२ ई० ) है। इसी की एक प्रति पासपुराण नाम से नागौर के सरस्वतीभवन में है। इस प्रति का लेखनकाल वि० सं० १५२० ( १४६३ ई० ) है । प्रति पूर्ण है ।३६
पासणाहचरिउ को प्रशस्ति में इन्हें मूलसंघ के वासबसेन का शिष्य कहा गया है । इनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है -श्रीकीर्ति >देवकीर्ति> मौनीदेव> माधवचन्द्र>अभयनन्दि >वासवचन्द्र>देवचन्द्र। देवचन्द्र ने पासणाहचरिउ की रचना गुदिज्जनगर के पार्श्वनाथ मन्दिर में की थी।५०
एक वासवसेन नामक विद्वान् का उल्लेख श्रवणबेलगोला (कर्णाटक) के एक शिलालेख में मिलता है । ११ सम्भवतः यही वासवसेन देवचन्द्र के गरु हैं। उक्त शिलालेख में वासबसेन को 'स्याद्वादतर्ककर्कशधिषणः' कहा गया है। देवचन्द्र के कालनिर्धारण में कोई आन्तरिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होता । डा० नेमिचन्द्रशास्त्री ने भाषा शैली आदि के परीक्षण के आधार पर देवचन्द्र का समय ईसा की बारहवीं शती के आसपास माना है।३२ . ८. पार्श्वनाथचरित-माणिक्यचन्द्रसूरि . यह दश सर्गात्मक ६७७० श्लोकप्रमाण महाकाव्य है। इसका अंगीरस शान्त है, किन्तु अंगरूप में अन्य रसों का भी निर्वाह किया गया
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