________________
( १२ )
स्थानांग " में कुंभ के चार प्रकार बताये गये हैं (१) पूर्ण और अपूर्ण, (२) पूर्ण और तुच्छ (३) तुच्छ, और पूर्ण, (४) तुच्छ और अतुच्छ । इसी तरह कुछ प्रकारान्तर से अंगुत्तरनिकाय " में कुंभ की उपमा पुरुष चतुभंगी से घटित की है (१) तुच्छ - खाली होने पर भी ढक्कन होता है, (२) भरा होने पर भी ढक्कन नहीं होता, (३) तुच्छ होता है ढक्कन नहीं होता है, (४) भरा हुआ होता है और ढक्कन भी होता है ।
(१) जिसकी वेश-भूषा तो ठीक है किन्तु आर्यसत्य का परिज्ञान नहीं है वह प्रथम कुंभ के सदृश है । आर्यसत्य का परिज्ञान होने पर भी बाह्य आकार सुन्दर नहीं हो वह द्वितीय कुंभ के सदृश है । (२) बाह्य आकार भी सुन्दर नहीं और आर्यसत्य का भी परिज्ञान नहीं । (३) बाह्य आकार भी 'सुन्दर और आर्य सत्य का परिज्ञान भी है । इसी तरह अन्य चतुभंगों के साथ निकाय के विषयवस्तु की तुलना की जा सकती है । इसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र की अनेक गाथाओं से बौद्ध साहित्यधम्मपद, ७० थेरीगाथा, ७१ थेरगाथा, ७२ अंगुत्तरनिकाय, ७ सुत्तनिपात, १४ जातकं, ७५ महावग्ग ७६ तथा वैदिक साहित्य श्रीमद्भागवत ७७ एवं महाभारत के शांतिपर्व, ७८ उद्योगपर्व, विष्णुपुराण, श्रीमद्भगवद्गीता, १ श्वेताश्वतर उपनिषद् शांकर भाष्य का भाव और अर्थ साम्य है |
७९
૮૦
२
उत्तराध्ययन के २५ वें अध्ययन में ब्राह्मणों के लक्षणों का निरूपण किया गया है और प्रत्त्येक गाथा के अन्त में "तं वयं बूम महाणं" पद है । उसकी तुलना बौद्ध ग्रन्थ धम्मपद के ब्राह्मण वर्ग ३६ वें तथा सुत्त - निपात के वासेसुत्त ३५ के २४५ वें अध्याय से की जा सकती है । धम्मपद के ब्राह्मण वर्ग की गाथा के अन्त में " तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं" पद आया है । सुत्तनिपात में भी इस शब्द का प्रयोग हुआ है । इसी प्रकार महाभारत के शान्तिपर्व अध्याय २४५ में ३६ श्लोक हैं उनमें ७ श्लोकों के अन्तिम चरण में 'तं देवा ब्राह्मणं विदुः' ऐसा पद है । इस प्रकार तीनों परम्परा के माननीय ग्रन्थों में ब्राह्मण के स्वरूप की मीमांसा की गई है । उस मीमांसा में कुछ शब्दों के परिवर्तन के साथ उन्हीं रूपक और उपमाओं के प्रयोग द्वारा विषय को स्पष्ट किया है ।
दशवैकालिक को अनेक गाथाओं की तुलना धम्मपद, ४ निकाय, ८६ कौशिक जातक, ' ८७ विसवन्त जातक,
संयुत्त
८५
सुत्तनिपात, '
Jain Education International
८
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org