Book Title: Jain Sahitya ke Vividh Ayam
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 24
________________ ( २२ ) पर विश्लेषण किया गया है। साथ ही ग्राम, नगर, खेड, कर्नाटक, मडम्ब, पत्तन, आकर, द्रोणमुख, निगम और राजधानी का स्वरूप भी चित्रित किया गया है। साढ़े पच्चीस आर्य देशों की राजधानी आदि का भी उल्लेख किया गया है। राजा, युवराज, महत्तर, अमात्य, कुमार, नियतिक, रूपयक्ष, आदि के स्वरूप और कार्यों पर भी चिन्तन किया गया है। साथ ही उस युग की संस्कृति और सभ्यता पर प्रकाश डालते हुए रत्न एवं धान्य की २४ जातियाँ बताई गई हैं। जांघिक आदि पाँच प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख है। १७ प्रकार के धान्य भण्डारों का वर्णन है। दण्ड, विदण्ड, लाठी, विलट्टी के अन्तर को स्पष्ट किया गया है। कुण्डल, गुण, मणि, तुडिय, तिसरिय, बालंभा, पलंबा, हार, अर्धहार, एकावली कनकावली, मुक्तावली, रत्नावली, पट्ट, मुकूट आदि उस युग में प्रचलित नाना प्रकार के आभूषणों के स्वरूप को भी चित्रित किया गया है। उद्यान गृह, निर्याण गृह, अट्ट-अट्टालक, शून्यगृह, भिन्नगृह, तृणगृह, गोगृह आदि अनेक प्रकार के गृहों का, कोष्ठागार, भांडागार, पानागार, क्षीण गह, गजशाला, मानसशाला आदि के स्वरूप पर भी विचार किया गया है । इस प्रकार आचारशास्त्र, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, नागरिकशास्त्र, मनोविज्ञान आदि पर आगम और उसके व्याख्या साहित्य में प्रचुर सामग्री है। ____ आगम साहित्य का विषय की दृष्टि से ही नहीं किन्तु साहित्यिक दृष्टि से भी प्रभूत महत्त्व है। आगमों में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है। उत्प्रेक्षा, रूपक, उपमा, श्लेष, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं पर जीव को पतंग, विषयों को दीपक और आसक्ति को आलोक की उपमा प्रदान की है। आगम साहित्य में गद्य और पद्य का मिश्रण भी पाया जाता है। यद्यपि गद्य और पद्य का स्वतन्त्र अस्तित्त्व है, किन्तु वे दोनों समान रूप से विषय को विकसित और पल्लवित करते हैं। प्रस्तुत प्रणाली ही आगे चलकर चम्पूकाव्य या गद्य-पद्यात्मक कथा काव्य के विकास का मूल स्रोत बनी। कथाओं के निकास के सम्पूर्ण रूप भी आगम साहित्य में मिलते हैं । वस्तु, पात्र, कथोपकथन, चरित्र-निर्माण प्रभति तत्त्व आगम व व्याख्या साहित्य में पाये जाते हैं । तर्क प्रधान दर्शन शैली का निकास भी आगम साहित्य में है। जीवन और जगत् के निनिध अनुभवों की जानकारी का यह साहित्य अनुपम कोश है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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