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मरू-गूर्जर जैन कवि
(१५) पाल्हणु
(१५) नेमि बारहमास रासो पद्य १६ पादि-कासमीर मुख मंडण देवी, वाएसरि पाल्हणु पणमेवी ।
पदमावतिय चक्र सरि नमिउ, अंबिका देवी हवीनवउ॥ चरिउ पसायउ नेमिजिण केरउ, कवित्तु गुण धम्म निवासो। जिम राइमइ विप्रोणुमओ, बारहमास पयासउं रासो ॥१॥
१५ वें पद्य में भी 'पाल्हण भणए' कवि का नाम प्रयुक्त है । अन्त-इण परि भणिया बारहमासा, पढत सुणंतह पूजउ प्रासा।
रायमइ नेमिकुमर वहु चरिउ, संखेविण कवि इणि परि कहि। अबिक देवि सासण देवि माइ, सघ सानिधु करिजउ समुदाइ ॥१६॥
'१० सं० १२८८ में रचित आबू रास में भी पाल्हण कवि का नाम है। दोनों रचनाएं एक ही कवि की होनी चाहिए । दोनों रचनाएं एक ही प्रति में उपलब्ध हुई हैं। जन गूर्जर कविओ भा० ३ पृ० ३९८ में नेमिरास, पाबूरास राम (?) कवि कृत होने की सभावना की है पर ये दोनों पाल्हण रचित ही हैं।
(सं० १४२५ के लगभग जिनप्रभसूरि परंपरा में लिखित संग्रहप्रति, बीकानेर वृहत् ज्ञान भण्डार)
प्र० सम्मेलन पत्रिका
(१६) जिनेश्वर सूरि (ख० जिनपति सूरि शि०
समय १२७८-१३३१) (१६) श्री महावीर जन्माभिषेकः गा० १४
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