Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 142
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयानन्द सोलहवीं सदी [ १२५ दूहा-पूगल पिंगल राव, नल राजा नरवर नयरै । प्रदीठा अणदीठा, सगाई देव संयोगे ॥१। गाहा । दूहा-पिंगल ऊंचालो कियो, गयो नरवरचे देस । पिंगल देस दुकाल थयो, किणही वाव विशेस ॥२ नळराजा आदर दियो, जो राजवियां जोग । देसवास सहि रावळा, अं घोड़ा औ लोग ॥३ नरवर नळ राजा तणों, ढोलो कुमर अनूप । राणी राव पिंगलतणी, रीझी देखे रूप ॥४ पिंगलपुत्री पद्मिणी, मारवणी त सुनाम । जोसी जोय विचारियो, धन विधाता काम ॥५ सारीखी जोड़ी जुड़ी, प्रा नारी प्रो नाह । राजा राणी सू क है, की प्रो वोवाह ॥६ अन्त-पिंगळ राब पमार री, पुतरी गुग अमोल । कछवाहो नररो सुतन, कुल दीपक छ ढोल ।।४३६ आरणंद अति अच्छव हुवो, नरवर वाज्या ढोल । ससनेही संणां तणां, कल में रहिया बोल ।।४४० दूहा गाहा सोरठा, मन विकसणां बखांण । प्रणजाणी मूरख हंस, रीझ चतुर सृजाण ।।४४१ पनर से तीस (१५३०) बरस, कथा कही गुण जाण । वदी साखे वार गुरु, जती जयानंद सुजाण ।।४४२ इति ढोला मारवणी दूहा सम्पूर्ण । ॥ वि० सागर गुटका नं० ६३ ।। For Private and Personal Use Only

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