Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्ञात सोलहवीं सदी [ १५१ (२२८ ) नमि राजऋषि कुलं गा० ६३ आदि-पहिलउ तिथंकर लिउ नाम, सर्व साधु नइ कर प्रणाम । श्री नमिराय तणउ अवदात, बोलिसु अध्ययनइ विख्यात ॥१ . अन्त–नमिऋषि नामिउ निज प्रातमा, शकई प्रेरी तओ महातमा । तउ घर छडि विदेह नरिंद, चारित उत्तम कियउ मुणिंद ॥६२ जे पंडित छइ ते सुविचार, पविक्खण सवि भोग निवारि । ते नमि राजऋषि नी परइं, वाचक विनय इम वचन सिद्धिइ वरइ ॥६३ इति श्री नमि राजऋषि कुलं । पत्र ३, पं० १३, अ० ४० (२२९) चित्रसंभूति कुलक गा० ८३ ___सं० १६५३ पूर्व प्रादि-वीर जिणंद सुवंदिय भावड, जसु गुण पार न सुरगुरु पावइ । तेरम अज्झयणइं विख्यात, चित्र संभूति तणो अवदात ॥१ श्री साकेत पुरइ वरचंग, चंद वडिस पुत्त बहु रंग मुणि चंद सागर बंदह पासइ, लेइ दीख पुहवि प्रतिभासइ ॥२ अन्त-तेरम अज्झयणइ सुणिवउ सुयणइ वयणइं वीर वखाणीयउ ए । जेह भवि भणिस्यइ श्रवणि सुणिस्यइ विनइ वृति थी जाणीयउ ए॥८३ For Private and Personal Use Only

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