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मरू-गूर्जर जैन कवि (२२७) नमिराज ऋषि संधि गा० ६९ बीकानयरे
सं० १५८३ लग०
मादि-पापहरण जिणिवर पणमेवी, सवि गणधर गुण हीयइ धरेवी ।
सासण देवति निय गुरु ध्यावउ, संधि बंधि नमि ऋषि गुण गावउ
॥१
महियलि मंडण मिथला नयरी, जिणि निजि तेजि नमाव्या वयरी।
नायक निरुपम तिहुप्रण राजइ, श्री नमिराज करइ गुण गाजइ अन्त-कर्म स्वपावी केवल नाण, पामी पहुंतउ नमि निरवाण । वीकानयर वसुह वरट्ठाण, विनय वणासीरी (रीसी) कीयउ
बखांण ॥६६ इति श्री नमि राजऋषि संधि । लेखन -? संवत १६३२ वर्ष प्राप्ता । विनय रचित अन्य स्तवनादि
१. शत्रुजय आदि स्त० गा० २७ २. थंमण पार्श्व स्त• गा० १३
३. पावं १० भव स्त० गा०३६ प्रति-गुटका नं. ७ स्थान-वृहत ज्ञान भण्डार
१७ वीं लिखित, साध्वी हेमी पठनार्थ पत्र ५ । पंक्ति १० । अक्षर ३६ स्थान-मोतीचंद खजांची संग्रह ।
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