Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 165
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ ] मरू-गूर्जर जैन कवि उवझाय भाव इणि परि भणइ, बात ज प्रावी ठामि ।।७३ नर नारी सह साभलइ विक्रम चरित्र ज बात ते सानद्धि चडी करि, टालइ सवि उपघात ॥७४ इति विक्रम चरित्र रास संपूर्णः बोर्डर पर विक्रम चुपई लिखा है । गुलाब कुमारी लाइब्रेरी वंडल नं० १९/१९४ पत्र १-५३ वि० दे० जै० गू० क. भा० ३ पृ० ६३३ (१६४) विनयसमुद्र (उपकेश हर्षसमुद्र शि०) (२२६) विक्रम पंचदण्ड चौपइ रचना काल-संवत् १५८३ आदि-देवि सरसति २ प्रथम प्रणमेवि । वीणा पुस्तक धारिणी, वंड विहंसि सुप्रससि चुल्लइ । कासमीर पुर वासिणी, देइ नांण अन्नांण पिल्लइ ॥ कवियण नीतु मण्डली, दिउ मुझ बुद्धि विसाल । जिम विक्रम राजा तणउ, कहां प्रबंध रसाल ॥१ गवरि नंदन २ समरि गणपत्ति । For Private and Personal Use Only

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