Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 163
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 1 आदि- -अप्राप्त १४६ ] मरू-गूर्जर जैन कवि इति श्री शाश्वत सर्व जिनद्विपंचाशिका संपूर्ण ॥ श्रीरस्तु || लेखनकाल - सवत् १७३० वर्षे आसोजवदि १३ दिने लिखतं पंडित दयातिलकेन । प्रति - पत्र - ३ ( १ में ३ पंक्ति) । पंक्ति १५ । अक्षर ४६ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२५ ) शोल इकतीसो गा० ३१ अन्त- - मन वचन काया तजी माया, विषय सुख मधु बिंदुआ । अरिहंत वाणी जीव जाणी, म करि नारी छंदुप्रा || जे सील लार्धं जीव सार्धं, मोक्ष ना सुख ते सुण्यो । श्री क्षांति मन्दिर गुरु प्रसाद हर्षप्रिय पाठक भण्यौ ॥ ३१ इति शील इकतीसो समाप्तः । प्रति० अभय ० लेखन काल - १७वीं शताब्दी । श्री ठकरादे पठनार्थं । प्रति - पत्र - ६ अन्य रचनाओं के साथ । पंक्ति ११ । अक्षर. ३७ । ( १६३) भाव उपाध्याय ( २२५) विक्रम चरित्र रास || विनयविमल गणि गुरुभ्यो नमः ॥ For Private and Personal Use Only अभय ० सं० १५८२

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