Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 166
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनय सोलहवीं सदी [ १४९ एकदंत गजवदन पुणि विघन विसन सवि दूरि टालइ ।। लंबोदर नवनिधि करण सुरह वृद स्वछंदि पालइ । मूगा वाहणि अति पवर करि मोदक अभिराम ॥ सिरि विक्रम नरवइ तणा, कवि करिस्यु गुण ग्राम ।।२ सत साहस तनि प्रादरु, जिमि मनिवछित होइ । पंचदंड सिरि छत्र किय, ए उत्तिम परि जोइ ।।८ अन्त - संवत पनरह सइ त्रयासीयइ ए, चरित्र निसुणी हरसीयइ । साहसीक जे होइ निसंक, कायर कंपइ जे बलि रंक ।।६० श्री उवएस गणाचरि सूरि, चरण करण गुण किरण प्रपूर । रयणप्यह प्रभु गुण गण भूरि, तसु अनुक्रमि संपइ सिद्धि सूरि तेहनइ वाचक हर्षसमुद्र, जसु जस उज्जल खीर समुद्र । तसु विनेय विनयांबुधि एह, रचिउ प्रबंध निरखि तिणि एह ।।१२ पंचदंड नाम सुचरित्र, देखी तेहनु अति विचित्र । तिणि विनोद चउपई रसाल, कीधी सुणतां सुफल विलास (विसाल) ॥६३ इति श्री विक्रमादित्य राजा पंचदंड चउपई समाप्त शुभं भवतु लेखन-१७ वी लि० (विनय समुद्र का अवड चौ० सं० १५६६ लिमरी के साथ) प्रति-पत्र संख्या ३५ से ६३ गुटकाकार । पंक्ति १५ । अक्षर ३७ स्थान-मोतीचंदजी खजांची संग्रह । - For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 164 165 166 167 168 169 170