Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 148
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षेमराज सोलहवीं सदी [१३१ प्रति-गुटका जिसमें प्रापके रचित अन्य स्तवन भी हैं जो संवत् १५४६ लिखित हैं । स्थान -जैसलमेर भंडार । प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय । (२०७) श्री देवतिलेकोपाध्याप चौपई गा० १५ आदि-पास जिणेसर पय नमु, निरूपम कमला कंद । सुगुरू थुणता पामियइ, अविहड़ सुख प्राणंद ॥१ अन्त-गुरु श्री देवतिलक उवझाय, प्रणम्यइ वाधइ सुह समवाय अरि करि केसरि विसहर चोर, समरघउ असिव निवारइ घोर ।।१४ ए चउपई सदा जे गणइ, उठि प्रभाति सुगुरू गुण थुणइ । कहइ पद्ममंदिर मन शुद्धि, तसु थाए सुख संपति रिद्धि ॥१५ (प्र. ऐ० जे० का संग्रह पृ० ५५) (१७७) क्षेमराज (ख० सोमध्वज शि०) (२०८) फलवर्षी पार्श्वनाथ रास । पद्य २५ । रचयिता-क्षेमराज । आदि-सुगुरु शिरोमणि मणिधरी, श्री गोतम गरुयउ गणधार । रास रचिसु रलियामणउ, श्रवणि सृणतां हो हरष अपार ॥१ फलवधी पास जुहारीइ खेला, देस सवालख नउ सिणगार । सार कर उ त्रिभवन धणी, सुरनर जंपि हो जय २ कार ।।२ अन्त-मलिय महाजन मनि रली, पास नउ रास वसंति रमति । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170