Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta,
Publisher: Abhay Jain Granthalay
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१३६ ]
आदि- राग आसाउरी
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अन्त
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म- गुर्जर जैन कवि
(२१४) हेमविमल सूरि फाग
सरसति सरस वचन दीइ, कबिजन केरी माइ ।
खड रितु रासो गाइसिउ, श्री हेमविमल गछराइ ॥ १
धुरि षड रति राजा वड़उ, सयल वणावलि कत ।
मलयानिल चंचल चड़ी, आयु मास वसंत ॥२
वि० हेमबिमल सूरि को आचार्य पद सं ० १५४८ में मिला था ।
(१८३ ) विनय रतन वा० वड़ गच्छ मुनि देवसूरि वा० महीरतन मुनिसार शि० (२१५) सुभद्रा चउपई-पद्य १५३
आदि - कमलवदनि हंसगामिनी, सरसय पय धरि चित्त संखेपइ सुभद्रा तणउ, कहिसु कवित्त सुचित्त ॥ १
सं० १५४६
सीलइ सोभा पवर धण, सीलई सोहग रूप । अविचल सीलई जीव सुख, शीलइ मानइ भूप ॥२ -वड़ गछि देवसूरि अनुक्रमइ, मुनीश्वरसूरि तणा पथ नमः । मेरुप्रभ सूरिंद पसाउ राजरत (न) सूरि गणहर राउ॥४६ श्री मुनिदेवसूरि उपदेसि महीरतन वाचक रयोस । गणि प्रधान गिरुश्रा गणसार, शील अखंडित गुणि मुनिसार ५०
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तास सीस रचिउ चरित्र, बुद्धि तीण गुरु पुण्य पवित्र । विनयरतन वाचक कर जोड़ि
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......॥५१

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