Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta,
Publisher: Abhay Jain Granthalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कमलधर्म
सोलहवीं सदी
[ १४१
अन्त-उएस गछ मंडण देवगुपति सूरीसरो, तास परि जयवंता सिधि
सूरि वरो। संव्रत पनर पइंसठ संवछरे, मेड़तइ नयर सयुण्यउ तित्थेसरो । वीनवंइ रंग मेघ रत सेवक वरो, भाव भगतइ नमी ताह वछी करो तास घरि लछीय होइ निश्चल थिरो, चउवए संघा दियइ आणंद
वरो ॥६. इम वीर जिणि वर संघ सुहकर, परम संपद दायगो। संखेव विस्यी वीससग (२७) भव, तवन तिहु अण नायगो। सोवन वन्न सुसंघ लछण, संत हथ तणं बरो। सुर असुर वदी पाय भवियण, होय जिणि मंगल करो ॥६१ इति महावीर स्तवन संपूर्ण ।
प्रति- गुटका न० ७ स्थान-वृहत् ज्ञान भंडार ।
(१८६) कमलधर्म (पं० भुवनधर्म शि०) (२२१) चतुर्विशति जिन तीर्थमाला गा० ४७
सं० १५६५ प्रादि - अप्राप्त अन्त- नयरि कालप्पिय आवीया ए मा, पूज्या जिणवर देव ।
चंगि पथि चंदेरीइ ए मा, आण्या कुशलय खेम ।४४ सति पास दोइ पूज्यस्या ए मा. हीयड़ेइ हरष धरेवि । श्रु भुवनधर्म पंडित वरू ए मा.,गुण मणि तणां भंडार ।।४५ कमलधर्म तसु सीस वरइ मा., करइ विदेस विहार । संवत पनरह पांसठ ए मा, हस साल सुविचार ॥४६
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170