Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 156
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भक्तिलाभ www.kobatirth.org सोलहवीं सदी निंदा ना अवगुण जेतला, मई नवि कहिवाई तेतला । प्रबन्ध साम्भलयां तणु प्रमाण, निंदा मोकु तुम्हें सुजाण । १७५ इति परनिंदा चौपाई सम्पूर्ण । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवत् १६१६ वर्षे श्राषाढ़ सुदि १० रवउ | श्री पिपल गच्छे भ० श्री शान्तिसूरि तालध्वजी शाखायाम् । प्रति० विनयसागर गुटका ५१ ( १८६ ) भक्तिलाभ (२१८) श्री जिनहंससूरि गुरु० गीत गा० १८ [ १३९ आदि - सरसति मति दिउ प्रम्ह प्रति धरणी, सरस सुकोमल वाणि । श्रीमज्जिन हंससूरि गुरु गाइसिउ, मन लीगउ गुण जाणि ॥। १ अन्त - बंदि छोड़ि मोटउ विरुद लाघउ, बादशाहे परखिया । श्री पासनाह जिरांद तुटु, संघ सकलइ हरखिया ।। १७ श्री भक्तिलाभ उवझाय बोलइ, भगति आणी प्रति घणी । श्री जिणहंससूरि चिरकाल जीवउ, गच्छ खरतर सिर धणी ।।१८ इति श्री गुरु गीतम् For Private and Personal Use Only ( प्र० ऐ० जं० का० सं० पृ० ५३ ) वि०जिनहंससूरि समय सूरिपद सं० १५५५ स्वर्ग १५८२

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