Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 159
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ ] मरू गूर्जर जैन कवि नियमति मानिइ वर्णव्या ए मा., तीरथ सगला सार । तीरथमाला जे भणइ ए मा., प्राणिय ऊलगि अंग । ते नरनारी कवि भणइ ए मा., पामइ नव-नव रंग ।।४७ इति श्री चतुर्विशति जिन तीर्थमाला संपूर्ण ॥श्री रस्तु ।। प्रति-पत्र २ से ६ पंक्ति-११ । अक्षर =२८॥ प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रंथालय (१६०) धर्मसमुद्र (खरतर विवेकसिंह शिष्य) (२२२) सुदर्शन चौपई आदि-रिसह जिणेसर पच नमी, समरिय सारद देवि । सेठ सुदरसिण नु चरित्र, विरचिसु है संखेवि ॥१ जिणवरि जे सवि व्रत क ह्यां, तिहां सवि शील प्रधान । सील सहित नर नइ दिय, सिव रमणी नितु मान ।।२ अन्त- श्री खरतर गछ गणधार, जिनचंद सूरि सहकार। वाचक विवेकसिंह सीह (? स) कहइ धर्मसमुद्र मुनीस ॥ज. इणि ध्यानि टलइ सवि रोग, इण ध्यानइ नासइ सोग । इणि ध्यानई जरइ दुख, इणि ध्यानइ गरुया सुक्ख ।।ज. इम सेठि सुदरसन चरिय, घण पुण्य प्रभावई भरिय ।। जे नर नारी नीरागी गाई, तिहिं ऋद्धि वृद्धि नितु थाई ॥जय For Private and Personal Use Only

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