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१३८ ]
मरू-गूर्जर जैन कवि
इति श्री जेसलमेरू चैत्य परवाडि ।। [ १७वीं शती के गुट के में अभय जैन ग्रंथालय, बीकानेर ]
(१८५) अज्ञात (२१७) परनिंदा चौपाई, पद्य १७५, .
सं० १५५८
प्रादि-- देवी सरस्वती पय पणमेवि, मनसिउशिव नायक समरेवि ।
कहुं कथा च उपई प्रबंध, परनिंदा ऊपरि संबंध ॥१ पंडित धर्मी विनय विवेक, नीम निपुण प्राचार अनेक । तपसी दानी ए कहइ लोक, निंदा करइ तु गुण सवि फोक ।।२ पर निंदा ते पोढउ पाप, पावक पांहि बधारइ व्याप । पुण्य पदारथ थान दहई रस भरी वाइ लूली वहइ ॥३ काया नगरी नव बारही, राजध्यानी एह नवली कही। मान मोह मच्छरह चिरास, परम हंस राजेसर तास ॥३ तास चेतना राणी एक, बीजी माया नहीं ते छेक ।
भूपति जे हवइ घर आवंति, कुमति सुमति तेहवी हवंति ।।५ अन्त-पर निंदक नइ नरक निवास, आप निंदक नइ शिव सुख वास ।
दुख मंदिर पर निदा पाप, सुख मंदिर निंदा पापाद ।।१७३ कला कुमुदनी वछर वेद, सुदिया सोमासर तसु रिद । नाग पंडव संख्याइ तिथिवार, धुरि दिन प्रारम्भ पूर्ण
विचार ॥१७४
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