Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta,
Publisher: Abhay Jain Granthalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हेमध्वज
सोलहवीं सदी
[ १३७
संघ पसाइं रचिउ एह, सोम्य दृष्टि मुझ करयो नेह । सवत पनरगुणचासइ चरी, भाद्रवड़इ मति उपनी खरी ।:५२ शास्त्र मांहि मइ दीठी जिसी, चउपइ बंधए प्राणी तिसी। भणइ भणावइ निसुणइ जेह, वरकाणाधिप तूसइ देव ।।५३
इति शील विषये सुभद्रा च उपई समाप्तः । संवत् १६६३ वर्षे प्रासो वदि २ दिने गणि समयसागरेणाले खि । मुनि प्रानद सागर मनि समति सागर वाचनार्थ शुभं भवतुः। .
[ पत्र ४ अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर ]
(१८४) हेमध्वज (२१६) जैसलमेर चैत्य परिपाटी गा० १६
सं० १५५० आदि-पहिलु हुं समरिस वाग्वाणि, माता द्य उ मुखि विमल वाणि ।
__ जिम चेत्र प्रवाड़ी करुं रगि, जेसलमेरु देखी हरषि अंगि ॥१ अन्त- सातमइ ए जिणहरि वीर, सासण सामिय गाईयइ ।
बिवा ए सउवावीस, भाव भली परिध्याईयइ ए सातइ ए जिणहर बिंब च्यारि सहख पठत्रीस पणि धन-धन ए ते नर नारि, नित्त जुहारइ ए एह जिण ॥१५ संवत् पनरह सय पंचासह भाव भगति नमंसिया मगसिरह मासइ मन उल्हासंइ हेमध्वज पसंसिया गणधर गण मूरत्ति गरुइ, प्रादि जिणवर पादुका मरुदेवि मायड़ी सयल संघह, करउ मंगल मालिका ।।१६
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170