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हेमध्वज
सोलहवीं सदी
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संघ पसाइं रचिउ एह, सोम्य दृष्टि मुझ करयो नेह । सवत पनरगुणचासइ चरी, भाद्रवड़इ मति उपनी खरी ।:५२ शास्त्र मांहि मइ दीठी जिसी, चउपइ बंधए प्राणी तिसी। भणइ भणावइ निसुणइ जेह, वरकाणाधिप तूसइ देव ।।५३
इति शील विषये सुभद्रा च उपई समाप्तः । संवत् १६६३ वर्षे प्रासो वदि २ दिने गणि समयसागरेणाले खि । मुनि प्रानद सागर मनि समति सागर वाचनार्थ शुभं भवतुः। .
[ पत्र ४ अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर ]
(१८४) हेमध्वज (२१६) जैसलमेर चैत्य परिपाटी गा० १६
सं० १५५० आदि-पहिलु हुं समरिस वाग्वाणि, माता द्य उ मुखि विमल वाणि ।
__ जिम चेत्र प्रवाड़ी करुं रगि, जेसलमेरु देखी हरषि अंगि ॥१ अन्त- सातमइ ए जिणहरि वीर, सासण सामिय गाईयइ ।
बिवा ए सउवावीस, भाव भली परिध्याईयइ ए सातइ ए जिणहर बिंब च्यारि सहख पठत्रीस पणि धन-धन ए ते नर नारि, नित्त जुहारइ ए एह जिण ॥१५ संवत् पनरह सय पंचासह भाव भगति नमंसिया मगसिरह मासइ मन उल्हासंइ हेमध्वज पसंसिया गणधर गण मूरत्ति गरुइ, प्रादि जिणवर पादुका मरुदेवि मायड़ी सयल संघह, करउ मंगल मालिका ।।१६
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