Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३४ J www.kobatirth.org इति श्री वक्वलचीर कुमार रिषि पगढमध्ये ग० अमरश्री गणिनी लेखिता श्रा० भवतु लेखक पाठकयोः श्रीरस्तु || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोतन पुर वरते, नगर सिरोमणि जाण । गढमढ धवलगृह, पोलि प्रसाद वषाणू । सोमचंद नरेसर, राज करइ सुविचार | राणी धारणि गुणवति तलु भरतार ॥। १ अन्तत षिणि रिषि पामिउ केवल निर्मल, क्षपक श्रेणि शुभ ध्यानि । बिन्हइ सहोदर ते केवल धरहुं प्रणम् बहुमानि । वक्कल चीरप्रसन चंद्ररिषि जिनशासनि जयवंत । कनक भणइ तेइना गुणगात, महिमा सुजस अनंत ॥ ७५ ॥ छ ॥ मरू- गूर्जर जैन कवि राजवेलि संपूर्णा समाप्ता मंडकीकी योग्य पठनार्थं शुभं प्रति० रा० प्रा० वि० प्र० वि० कनक दे० जे० गु० भाग० १ पृ० १७० भा० ३ पृ० ६२६ (१८१) सालिग (२१२) बलभ्रद वेलि गा० २८ श्रादि- द्वारिकां नयरी नोकल्या, बे बंधव ईक ठाय । त्रिषा ऊपनी कृष्ण नई, बंधव पाणी पाय ॥१ For Private and Personal Use Only बंधव जाई लाव्यु नीर, ऊवीसम साहस धीर । पढयउ छइ वृख तली छाया, कु मलांणी कोमल काया ||२

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