Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta,
Publisher: Abhay Jain Granthalay
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सोलहवीं सदी
[ १३३
इति प्रभव जंबूस्वामि वेलि ।। समाप्त ।। संवत् १५४८ वर्षे प्रासोवदि-मे ।। व्यहा राधवपठनार्थ ॥ ।। श्री ॥ छ । शुभं भवतु ।।
प्रति० रा० प्रा० वि० प्र०
(१७६) जयवल्लभ .
(२१०) नेमि परमानंद वेलि पत्र ४ प्रादि-गिरि गिरनारि सोहामणो रे, पाखलि फिरता वन्न
जसु शिरिस्वामी यादववंशी, सोहइ सामल वन्न रे ॥१ हीयडला हेलिरे नेमजी नाम मेल्हि, परमाणदरस वेलि रे
हृदय कमलितु भेलि रे, उपशम रंगज रेलि रे नेमि ।। प्रांचली ।। अन्त-श्री जइवलुभ मुनीस्वर नवइ सुरणसु नेमि जिणंद
दोइ कर बोडी सेवा तोरी, मांगू वलीवली एह रे ॥४८ इति श्री नेमि परमानंद वेलि समाप्ता ।।
प्रति० रा० प्रा० वि० प्र. वि० दे० जे० गु० क. भा० ३ पृ० ५१७
१८०) कनक नं० १३४६ (२११) वल्कल चीर ऋषि वेलि
क० कनक, पत्र ४ मादि-राग प्रसाउरी । नंदिषेण ना गीतनु ढाल ।।
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