Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta,
Publisher: Abhay Jain Granthalay
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१३०]
मरू-गूर्जर जैन कवि
सुणउ चरित नरवइ सद भाइ, भूलउ अराउ अंतेउर मांहि । प्रस्तरी तणउ विलास जे करइ, सु कंकसेन भूलउ जम
उभसइ ।।३३२ इति ककसेन राजा को चउपइ समाप्त ।
संवत् १७३५ वर्षे मगसर सुद ६, सने मासती दमाजी अमरेला लिखितम् गुरुजी स्मा पठनार्थम् नदेरइ मध्ये बांचे जिसु राम-राम बंचजो जी तथा चौमासो नदेरइ मध्ये जे तीर्थी जोय हिंडउं वरी छ । अनेक वंदणा बंचजो जी।
प्रति० विनयसागरजी संग्रह, कोटा गुटका
(१७६) पद्ममंदिर (ख० गुणरत्नसूरि शि०) (२०६) गुणरत्न सूरि विवाहलउ गा० ४९
__ सं० १५४६
आदि-मंगल कमलविलास दिवायरं सायर संति पायारविदं ।
पणमिय अमिय गुण रयण रयणायर, राय रंकाण प्राणद चंदं ॥१ इक्क मह नाण लोयण तणउ दायगो, नायको अनइ संजम सिरिए ।
सुवन कटोरड़ी सोहग उरडी, जगि करइ दूध साकर भरीए ॥३ अन्त-एह सिरि गुणरयणसूरि वीवाहलउ, पद्ममंदिर गणि तासु
सीस। पभणउ भवियण अनुदिन, जेम पामउ सुहं सुह जगीस ॥४६ इति श्री गुणरत्न सूरीराणां वीवाहलउ ।।
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