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मरू-गूर्जर जैन कवि
संवत पंनर यांत्रीसु जाणि, आसोई पूनमि अहिनाणि । गुरुवारइ पूक्ष नक्षत्र होड, पूरव पूण्य तणां फल जोई ।। कर जोड़ी कोरति प्रणमइ, आराम सोभा रास जे सुणइ । भणइ गुणइ जे नर नि नारि, नवनधि वलसइ तेह धरि बारि ॥ प्रति पाराम सोभा रास समाप्तः । संवत् १५५६ वर्षे चैत्र बदि ८ भूमे लखित ॥ भुवनवल्लभ गणि विलोकनार्थ ॥ चपड़ वडो पोसाल नु जाणियो सही १०८।
(डॉ० भोगीलाल सांडेसरा से विवरण प्राप्त)
(१७४) लब्धिसागर सूरि (२०४) वीशो (२० स्तवन)
___ सं० १५५४ वि० आदिअन्त-धवल मंगल गुण गाई वाला, रास भास वर तोरण माला ।
वाजइ कित्ति भेरि भंकारा, घरि घरि उछव जय २ कारा। इय देव पुरंदर सस्थिय सुदर अज्जिय कीरिय परमेसरू ए जो पणमइ भाविइं सरल सभाविइं तूसइ तासनिजग गुरु ए ।
इति श्री अजितवीर्य स्तवनं २० श्री लब्धिसागर सूरिभिः कृतानि । लेखन - संवत् १५ प्राषाढादि ५४ वर्षे द्वितीय श्रावण सुदि १ सोमे लिखित
शुभं भवतु।
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