Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कीरति सोलहवीं सदी [ १२७ (१७३) कीरति (साधु पूनिम गच्छ विजयचन्द्र सूरि) (२०३) आराम शोभा रास-कीरति कृत सं० १५३५ प्राश्विन पूर्णिमा पादि-सरसति सामिणि वीनवू, मांगु निरमल बुद्धि । कवित करसि सोहामण, सांभलता सुख वृद्धि ।।१ आराम शोभा नारी भली, जाणइ सयल संसार । पुण्यइ ते गिरूइ हुइ, बोलिसु तास विचार ॥२ जंबुद्वीपह दश कुश, नयर पाडलीपुर नाम । वापी कूप तडाग गढ़, रूपड़ा सफल आराम ॥३ ते नयरी सहपूरु समी, विस्तरि जोयण बार । चउरासी चहुँटा जिहां, रूयड़ा पोलि पगार ॥४ अन्त-पुण्यइं लाभई सुख सयोग, पुण्यइ काजइ देवगह भोग । पुण्यइ सवि अंतराय टलइ, मनवंछित फल पुण्य लहइ ॥ साध पूनिम पक्ष गच्छ पहिनाण, श्री रामचन्द्र सूरि सुगुरु सुजाण । नवरसे फरइ अमृत वखाणि, चतुर्विध श्री संत्रमनि आण ॥ तस पाटधर साहसधीर, पाप पखालइ जाणे नीर । पच महाव्रत पालणवीर, श्री पुण्यचन्द्र सूरि गरुपा गंभीर ॥ . तास पट्ट उदया अभिनवा भारगु, जाणे महिमा मेरू समान । गिरुमा गुणह तणू निधान, श्री विजयचन्द्र सूरि युगप्रधान ।। For Private and Personal Use Only

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