Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta,
Publisher: Abhay Jain Granthalay
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अनात
पंद्रहवीं सदी
[ १०९ (१४८) राजलच्छी (तपा शिवचूला
___ महतरा शिष्या) (१७७) शिवचूला गणिनी विज्ञप्ति गा० २०
सं० १४०० लगभग
प्रादि-शासन देव ते मन धरिए चउवीस जिन पय अणुसरी ए ।
गोयम स्वामि पसायलु ए प्रमे गाइसि श्री गुरुणी विवाहलु ए॥१॥ अन्त-द्र पदि तारा मृगावती ए, सीता य मन्दोदरी सरसती ए। सोलसती सानिध करइ ए, भणववाथी श्री संघ दुरिया हरह
ए॥२०॥ इति श्री चितकीति सूरि महात्तरा शिवचूला गणि प्रवत्तिनी राजलच्छी गणि विज्ञप्तिका श्राविका हीरादे योग्यं ।
. (प्र० ऐ० जन० का० सं० पृ. ३३६ ।
' (१४६) अज्ञात , (ख० कीर्तिरत्न सूरि शि०) (१७८) कोतिरत्नसूरि फागु गा० ३६ '
सं० १५०० लग० आदि-प्रारंभ के २७ पद्य प्राप्त नहीं। अन्त-एरिस सुह गुरु तणउ नाम, नितु मनिहि घरीजइ। .
तिमि तिम नव निहि सयल सिद्धि, बहु बृद्धि लहीजइ ।। ए फागु उछरंगि रमाइ, जे मास वसंते । तिहि मणि नाण पहाण किसि, महियल पसरते. ॥३६॥
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