Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोलहवीं सदी सोलहवीं शताब्दी ( १६२) मतिशेखर (वा) ( १९१) बावनी गा० ५३ सं० १५१४ लग० प्रादि- पहिलउ परम ब्रह्म असरी, तेहनि एक अविचल चिति धरी । कहइ मतिशेखर सुणो सुजाण, माई बावन, वर्ण व खाणि ॥ १ [ ११७ भलई भलिय परि लागु पाय, गुरु गणवइ सरसति पियु माइ | नमतां नर भवि आवइ खोड़ि, अग भले जिम दोवड़ मोड़ि २ अन्त - माई अखर नी बावनी, इणि परि कही विश्व पावनी । वाचक मतिशेखर इम कहइ, भणई सु नर अक्षय पद लहइ ।। ५३ इति श्री माई अक्षर बावनी समाप्ता । ( अभय जैन ग्रन्थालयस्थ गुटके में ) वि० दे० जे० गु०क० भा० १ पृ० ४८ ( अन्य रचना सं० १५१४ की प्राप्त भा० ३ पृ० ४६७ ) For Private and Personal Use Only ( १६३) अज्ञात [केहरु ?] ( १९२ ) श्री जिनभद्र सूरि पट्टे श्री जिनचन्द्र सूरि गीतम् गा० २ राग मल्हार कुंजर मयण नमनि मच्छरु करि, हरि हरु ब्रह्म नयहु जाणी |

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170