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मरू- गूर्जर जैन कवि
प्र० ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ११-१२ इसी तरह का एक अन्य गीत तथा जिनप्रभसूरि के शिष्य एवं उनके पट्टधर जिनदेवसूरि के २ ऐतिहासिक गीत भी साथ ही प्रकाशित हैं । मूलप्रति अनेक अन्य रचनाओं के साथ वृहत् ज्ञान भंडार, बीकानेर में सं० १४२० के आसपास की लिखित है ।
(३५) जयधर्म ख ० जिनकुशलसूरि शि० (४५) श्री जिनकुशलसूरि रेल्हुया गा० १०
प्रादि- धनुधनु जेल्हड मंतिवर धनु जयतल देविय इत्थिय गुण संपन्न । जीह तर इ कुलि अवयरिउ परवाइय गंजणो सिरि जिनकुशल मुदि ॥ १ अन्त - सिरि जिण चन्दहसूरि सीसुवर सीळ संभूसिउ वंदहि जे सविचार ते नर नरसुरसिद्धि सुह तव चरण, संसाहिय पावहि नातु अप्पारु ॥ १० इति श्री जिनकुशल सूरि रेल्हुया कृतिरियं जयधर्म गणिका
प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय श्री जिन कुशल सूरि का आचार्य काल सं. १३७७ से १३८६ है ।
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