Book Title: Jain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Author(s): Agarchand Nahta, 
Publisher: Abhay Jain Granthalay

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Page 119
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२]. मरू-गूर्जर जन कवि (१३६) परमानंद (?) (१६५) शत्रुजय चैत्य परिपाटी गा०४१ मादि-सरसति सामिणि नमिय पाय, सिरि सेत्रिय केरी। चैतु प्रवाडिहि (क) रि विहेव, मनि रंगि नवेरी ॥१ पालीयताणइ ए पास वीर, ललतासरि वांदू । नेमिहि काहिं नमीय पाय, भव दुखन कंदं ॥२॥ अन्त-सेत्रुज गिरिवर सियं धणीय नरेसूया, अगिउ अभिनव चंद । सूरति परमानंद दिय नरेसूया, टालइ सवे वि छिंद ।।४० रिद्धि वृद्धि कल्याण करी नरेसूया, बोले चैत्य प्रवाडि एह । तीरथ यात्रा फल दियए नरेसूया, निरमल करय सुदेह ॥४१ प्रति० प्रमय (१३७) अज्ञात (१६६) शत्रुजय चैत्य परिपाटी गा० ३६ मादि-वाग वाणि सुपसाउ करे, सामिणि पूरि रहारे। श्री शत्रुजय जिण भुवणि, भाविहिं चेत्र प्रवाड़े ।।१ पालीताणइ तलहठीय, नयरह माहि विहारो। नरवइ कुमरिहिं कारविउ, पासु जुहारिसु सारो ॥२ मन्त-छूटउ सहिं आगदह, प्राविय भलई संसारे । सिद्धि क्षेत्र जुहारिय ए, नवनिद्धि पडीय भंडारे ॥३५ For Private and Personal Use Only

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