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आसिगु
तेरहवीं सदी
[ ११
एहु श्री जिणपति सूरि गुरु जुगपवरु, 'साह रयण' इम
थुइ ए समरइ जे नर नारि निरंतर, तहा घर नव निधि संपजइ ए ॥ २० ॥ ( ० ऐ० जैन काव्य संग्रह पृ० ६ मूलप्रति - सं० १४९३ लिखित अभय जैन ग्रन्थालय संग्रह ग्रन्थ पुस्तिका
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(१४) भत्तउ ( ख० जिन पति सूरि श्रावक ) (१४) श्री जिन पति सूरि गीत गा० २०
सं० १२७८ लगभग
आदि - वीर जिणेसर नमीउ सुरेसर, तस पह पणमिय पय कमले । युगवर जिनपति सूरि गुणमंडन, गुण गण गाइसो मति रमले ||१|| अन्त चरण कमल नरवर सुर सेवइ, मंगल केलि निवास हुए ।
थूभह-रथण पालणपुर नयरिहिं तिहुषण पूरइ ए आसहुए ||१६|| लोणउ कमलेहि भमर जिम भत्तउ, पाय कमल पर्णामिय कहइ । समरइ ए जे नर नारि निरंतर, तिहां घरे रिद्धि नव निहि लहइए ||२०||
प्र० ऐ० जैन काव्य संग्रह पृ० ८
दि० शाह रयण एवं भत्तउ रचित गीत द्वय में छई पद्य व पंक्तियां तो एक ही हैं। दोनों गीत एक दूसरे से प्रभावित हैं ।
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