Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 10
________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [3] नाम तो लेते हैं और रखते नहीं हैं इसलिये जो भव्य जीव आत्मार्थी मत पक्ष को छोड कर अपनी आत्मा का कल्यान करना चाहे तो जो हम चोदह उपरगनों का नाम और प्रयोजन लिखवाते हैं वह जो कोई बाईस टोला तेरह पंथियों से पूछेगा और इनके पास में न देखेगा तो उस भव्य जीव को उसी वक्त इनके जाल का फंद खल जायगा तो सत्यं जैन धर्म मिल जायगा मिथ्यात तिमिर भी कट जायगा इसलिये प्रथम साध मनिराज के वास्ते चोदह उपगरण श्री प्रश्नव्याकर सूत्र के पांचवें संवर द्वार में कहा है सोई दिखाते हैं।:__भायण भंडोवहि ओवगरणं पडिगहो 1 पायबंधणं 2 पाएके सरीया 3 पायठवणंच 4 पडलाइतिन्नेवय 5 रयताणंच 6 गोछ उ 7 तिणियपछागा 10 रउहरणं 11 चोलपट्टग 12 मुहणंतक 13 मादिय पायपुरणा 14 एयंपियसंजमस्त उव बहणठायवीययव दंसमसगसिय परिरखणठयाए उबगरण राग दोष रहियं परीहरिव्यं संजएणणिच्चं पडिलेहण पफोडण पमज्जणाए अहोराउयअप्पमत्तेणहोइ संयतं निखवियध्वं गिएहयवं भायण भंडोवाहि ओवगरणं. ____ अर्थ भावार्थ भाजन मट्टी काष्ट और फलादिक का भाः भंडो अर्थात उपधि वस्त्रादिक ओः उपगरण अर्थात् जिससे साध का चारित्र पले सो अब उपगरणों के नाम लिखाते हैं पडिगाहो // 1 // कहतां पात्रा. पायबंधनं // 2 // कहता पात्र रखने की झोली पाय केसरिया // 3 // कहतां पात्र की पडिलेहना अर्थात् प्रमाजन ( पुंजनी ) पायठवणंच // 4 // कहतां पात्र के नीचे आहार करती दफे बिछावे. पडलाइतिन्नबेया // 5 // कहतां तीन पत कपडा के उनियालेमें चौमासे में पांच प्रत पात्राकं ढांकने के वास्ते जिससे सचित वस्तु का आहारादिक से संघटा न हो रयंताणंत्र // 6 // कहतां पात्रका वीटना गोला // 7 // कहतां वस्त्र खंड कम्मल - -

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