________________ - [12] जैन लिंग निर्णय / तोभी सोमल ने उसके बचन को न सुना तब देवता फिर पीछा चला गया तिसके बाद सोमल प्रभात समय सूर्य उगे के बाद बल्कल का वस्त्र पहन के काष्ट कुराडा आदि उपगरनों को हाथ में ले और काष्ठकी मुद्रा से मुख को बांधके उत्तर दिशाके सन्मुख चला तिसके बाद सोमल ब्राह्मण तीजे दिन संध्या के विष अशोक वृक्ष के नीचे आयकर ठहरा और जो क्रिया बेदी आदिक करके गंगा में स्नान किया फिर पहिले की तरह सर्व किया करके काष्ट मद्रा से मुख को बांध कर चप होकर बैठा तिसके बाद सोमल सन्यासी के पासमें आधीरात के विषे एक देवता आकाश में खड़ा रहा पीछे गया तिसके बाद सोमल प्रभातमें जब सूर्य उगा तिसके बाद बल्कल का वस्त्र पहर कर और भंड उपगरनादि लेकर काष्ट की मुद्रा सूं मुख बांधकर उत्तर दिशा को चला तिसके बाद सोमलऋषि चौथेदिन संध्याकाल के समय जिस जगह बड़ का वृक्ष था उस जगह आकर ठहरा और उपगरनादि रख कर जो क्रिया पूर्व करीथी सो क्रिया कर काष्टकी मुहपत्ती से मुख को बांधकर के चुपचाप होकर बैठमया तिसके बाद आधी रातके समय एक देवता पास आयकर प्रगटहुवा और पूर्व की तरह कहने लगा कि भो सोमल तेरी खोटी प्रवज्या है ऐसा कहकर पीछा चलागया तिसके बाद सोमल जब गर्य उदयहुवा के बाद बल्कलका वस्त्र पहरकर सर्व उपगरन लेकर काष्टकी मुद्रासे मुख बांधकर उत्तर दिशाके सन्मुख चला तिसके बाद सोमन सन्यासी पाचवें दिन संध्या काल के समय उंबर नाम दरखत उम जगह आयकर उस उंबर दरख्त के नीचे ठहरा और बेदी आदिक सर्व किया करके बाद काष्टकी मुद्रासे मुख बांध चूर होकर के रहा तिसके बाद उस सोमल सन्यासी के पासमें पहेली आधीरात बीतगई और पिछली आधीरात के समय एक देवता प्रगट हुवा और कहने लगा कि अंर सोमल तेरी प्रवृज्या खोटीहै इसी रीतिसे कहा तोभी चुप होरहा तिसके बाद उस देवता ने दो तीन वार कहा कि अरे सोमल तरी प्रवृज्या दुष्ट अर्थात्