Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 63
________________ . . - - - - [5 ] जैन लिंग निर्णय के शब्द आप खुशी तो हो बान तो फिर अब हम तुम्ही को मध्यस्थ करके पूछते हैं कि ऊर निम्वी बातें तुमारे सत्र सुनके उस मुख बांधने वाले से लड़ाई करेंग या नहीं तो तुमको कह नाही पड़ेगा कि उम ने बुरा बचन बोला इमस वो अवश्य लड़ेगा दुमरा मुख बांधने वाला जो ऊपर लिखे शब्द हिंसाकारी बोलेगा तो तुम उसका वचन हिंसा कहोग या नहीं तो तुम को कहना ही पड़ेगा कि उसको बचन की हिंमा लगी इस रीति से बद्धि का विचार करो खंचातान को परिहगे दूसरा दृष्टांत हमारा और भी श्रवण करो कोई शख्न तुगरे सवक को मिला और खुलही मुख से कहने लगा कि जैगापान साहब आप बहुत दिनों में मिले हो आपकी लायकी की हम शोभा नहीं करसक्त आप के पिताजी की बड़ी लायकी है मेरे को चाहते हैं परत बहुत दिन से मिले नहीं हैं सो अच्छे हैं एक दिना आप तो नहीं मिले में आप के घर गया था और छाछ की मेरे को दरकार थी सो छाछ भी अच्छी भरी और दूध दही की मनवार भी खूब करी और मासाहब कहने लगे कि बेटा लेजायाकर . चावे सो थारा घर है दिन चार की बात है कि मैं फलाने गाम गया था उस गांम मेशायद आपकी बहन परणाई है सो बाई साब मेरे को मिली थी सो मेरी इतनी खातिरकी कि मेरेको बिना जीमे नही आनेदिया इत्यादि अनेक अच्छी बातें कहकर आगे को चला और कोई सांपको मारता था उसको देख कर कहने लगाकि अरे भाइ क्यों मारतहो इसने तुमरा क्या बिगाडा स दृष्टांत से हम तुम ही को मध्यस्त करके पुरते हैं की उ7र लिखा बात तुमारे सेवक सुनकर खातर करेगः वा लडेगा तो तुम कहना ही पडेगा का खानर करेगा लडाई का तो कामही क्या दूनरा जो सरप को उसने बचाया तो तुनको कहनाही पडेगा की दयारूपी शब्दहै इसलिये इन दोन दृष्टांतो को विचारो कदाचित् तुम अपने आग्रह से इन दोनो दृष्टातो को मनमें सत जानकर उपरसे न बोलोतो - - -

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