Book Title: Jain Ling Nirnay
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ - - - - - कुमतोच्छनन भास्कर // [56) हेतु रजोहरणादिक करके प्रशस्थ अच्छा जती अर्थात् वा निर्मल समगत का धनी सत बल वीर्य से पंचसमति संपूर्ण है जिसके एसा हितकारी सर्व प्राण भून जीव सतके विषे पीडा न कर तिस वास्ते सर्वको विश्वास उपज ऐसा यती रूप भेष है जिसका थोड़ी है प्रति लेखना क्योंकि थोड़ा उपगरण होनेसे पडिलेहणा भी थोड़ो होती है और जितेन्द्री तप करके संयुक्त इंद्रियां आदिक संयुक्त होय इस पाठ से साधू का भेष सर्व प्राणी भूत जीवों के हितकारी विश्वास कराने वाला जिस में किसी को भय न उपजे ऐमा श्री वीतराग सर्वज्ञ देवने कह्या सोतो खरा परंतु मुख बंधे भेषको देख के प्रत्यक्ष जीवों को अहितकारी अर्थात् भयकारी दीखे है क्योंकि बालक डरते हैं गाय भैस आदि ढोर भी देखकर भागते हैं ग्राम में धूपते कुत्ताभी भुसते हैं और अनजान घरमें घुसने से स्त्री कहती है कि अरे ये कौन है मुख बंधा इस. लिये मालूम होताहै कि मुख बंधा भेष साधुका नहीं क्योंकि मुनि का भेषतो सर्व को सुहाता अर्थात् प्रीतिकारी होताहे मुख बंधा भेष तो प्रत्यक्ष भांड रूपहै ऐसा मुनीका भेष सर्वज्ञ देव कदापि न कहेगा इसा नेय मतपक्ष को छोड कर ज्ञान दृष्टि से देखो कमों कि साधु जगत का पूजनीक है और ऐमा श्री वर्धमान स्वामी श्री मुखमे मुनिको पूज्य कहाहै और पूज्य उसीको कहना चाहिये कि जिनको जगत पजे मुख बांधने वाले मोमन सन्याजी के लिंगको सम्यक्त दृष्टी देवता ने वारंवार निंद्या करी है सो पाठ हम पीछे लिख आये इमलिये हे भोले भाइयो मुख बांधने के कदागह से मुख मोडो करनी परूय्ये धर्ममे प्रति जोड़ो कुगरुका संग छोड़ो क्योंकि श्रीवतराग संवैज्ञदेव एक एक बानका बार बार करक दाशाई है परंतु साधु को मुख बाधने की किंचित भी सत्रमें बात नहीं आईह जिस जगह बांधने का काम पड़ताह उम जगह खुलासा मुख बाधना सूत्रों में आयाह मोभी तुम्हारी करुणा से भगवतीजीशतक 8 मा उद्देशा 33 में नाईका मुख बांधना कह्या

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78