Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 69
________________ - [6] जैन लिंग निर्णय // दोनों के सरीखा बांधा परन्तु नाई को वस्त्र कह्या और मृगावती / रानी के कहने से श्री गोतम स्वामी ने मुख बांधा उम जगह मुंहपत्ती कही मुख तो दोनों के सरीखा बांधा परन्तु नाई को वस्त्र कह्या और गोतम स्वामी को मुखपत्ती कहीं इसलिये विचार करना ज़रूर है बिना बिचारे जैन धर्म दूर है शास्त्र प्रमाण बिना मुख बांध कर जैन साधु बनों क्या तुम्हारा मगदूर है जिन आज्ञा विरुद्ध मुख बांधतेहो बुरा दीख रूपनहीं चहरेपरन रहे नूरहै अब दूसरे श्री ज्ञाताजी के पाठ में श्रेणिक राजा को उपदेश लेकर मेघ कुमार की दिक्षा का वर्णन जानो आगे पीछे की बात उसी तरह पहिचानो परन्तु उस पाठ में तो नाईने मुख बांधने का वस्त्र अर्थात् पोतिया के आठ पुर्त से मुख बांधना कह्या और इस ज्ञाता सत्र के पाठ में वस्त्र अर्थात् पातिया के चार पुड़ अर्थात् चार तेह करके मुख बांधा बाकी का सर्व मतलब पीछे लिखाते सो यह जान लेना अब इस जगह नाई के मुख धने को सर्वज्ञ देव पोतिया अर्थात् वस्त्र कह्या परन्तु मुंहपत्ती न कह्या इसका कारण क्या इसलिये हे भोले भाइयो गुरु कुल वास बिना इस सूत्र का रहस्य मिलना मुशकिल है क्योंकि देखो नाई उस वस्त्र को हरएक काम में ले आता है इसलिये उसको महपत्ती न कह्या और पतिया अर्थात् वस्त्र कह्या और श्री गोतम स्वामी की मुखपत्ती कह्या सो कारन क्या सोई दिखाते हैं कि गोतम स्वामी के पास मुख वस्त्र है तिस वस्त्र की एसी थापना प्रमाण सहित करी हुई है कि इस वस्त्र से मुख ढकने के सिवाय दूसरा कोई काम इस बस्त्र से न करना इस वास्ते श्री मोतम स्वामी के वस्त्र को मखवस्त्र का कह्या ओर इसी रीति से इस ज्ञाता सुत्र के आठवें नौवें अध्येन में जितशत्रु राजा वा श्री मल्लिनाथ स्वामी के अधिकार में मुख ढकने के वास्त पछेवड़ी दपट्टा मख ढकने के वास्त कह्या ग्रंथ बढ़ जाने के भय से न लिखाया इस लिये हे भोले भाइयो! बुद्धि | का विचार कर मन पक्ष को खंटी पर धर हमने तुम को इतना

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