Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 75
________________ [6] जैन लिंग निर्णय // काल वर्तमान की व्यवस्था क्या कहैं क्योंकि देखो श्रीआनंदघन माहाराज कहते हैं कि आभिनंदन जिन दर्शन तरसीयो दर्शन दुर्लभ देवमत मत भेदे हो जो जाय पूछिये सोथापत अहीमेव इस रीति से सब कोई अपने को सच्चा और दूसरे को झंठा कहते हैं सो प्रत्यक्ष मालम होते हैं क्योंकि देखो मुख बांधनेवाले हँढिया कहते है कि जो श्रावग मख नहीं बांधे वो श्रावग नहीं हिंसा धर्मी मंदिरपर्जन वाला है इस कहने से प्रत्यक्ष माल्लम होता है कि उलटा चोर कृतवाल को डंडे किसलिये की जिन पूजन अनादि से शास्त्रानुसार आत्मार्थी करते चले आते हैं तिसको बरा कहकर शास्त्र बिदून मुख बांधना अच्छा बताते हैं कुलिंग थापने में जरा भी नहीं शरमाते हैं अपनी खींचातान मचाते हैं उत्तर तो देते नहीं केवल गाल बजाते हैं परभव से जरा भी डर नहिं लाते हैं आपतो डूबे जातिकुल के जैनियों को डुबाते हैं इस रीति से हे भोले भाईयों गोशाला भी जैनी बनता था परंतु अपने श्रावगों को मुख न बंधाया इस लिये हमने गोशाले के श्रावक का कथन सुनाया उपासक दिशा सत्र सातवां अध्यन का लेख लिखाया सूत्र के बिना मुख बांधने का कुलिंग किस रबाड से चलाया इसलिये हमने लिंगानर्णय ग्रंथ को बनाया सिद्धान्त बिदून क्यों कुलिंग को बनाया मुख बांधने से अपने चहरे का नूर गुमाया गांव में घुसते हुए कुत्ते को भुंकाया हमने तुम्हारे कल्याण के हेतु इतने सूत्रों का पाठ समझाया इतने पर भी न भानोनो दुर्गति को जाओरे भाईयो इतना सुनकर कुमात मंडन ढुंडक मुख बांधने वाला चोंककर बोला कि आप अपनीही कहते हो या किसी दूसरे की भी सुनते हो भला शास्त्रों के प्रमाण से निषेध किया परंतु हाथ में रखना तो हमको बतलाइये क्यों नाहक झपाड़ मचाई है तोते की तरह टेंटें लगाई है क्योंकि मुंह पत्ती कहने से मुख पर बांधते थे हाथ पत्ती नहीं जो हाथ में रखते हो और जो हाथ में रखते हो तो हमको ऐसा पाठ / /

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