Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 70
________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // पाठ सूत्र का दिखाया साधु को मुख बांधना कहीं पर न आया क्यों तुम ने कुलिंग बनाया आप दुबे और श्रावक कू मुख बांध कर डुबाया जिन आगम के बीच गृहस्थी को मुख बांधना मेरे देखने में न आया न मालम जिन शास्त्र चिदन मुख बांधने का पंथ कहां से चलाया श्रावक का वर्णन श्री उपायकदिशा सत्र में पाया उस सूत्र बिना गहस्थियां का मुख तने क्योंकर बंधवाया इस लिये हे भोले भाइयो पक्षपात को छोड कर बुद्धि का विचार करे। सूत्रों पर आस्ता धरो जिससे तुम्हारा कल्याण हो क्योंकि देखो उपासकदिशा सत्र अध्येन 3 तीमरे में है मो पाठ दिखाते हैं। ... पाठः-जहा आणंदो जावसमस्स भगवउ महाबीरस्स अंतिय धम्मपन्नति उवसंपजिताणं विहरइतएणंतस्स काम देवस्स पूवरत्ता वरतकालसमयंसी एगेदेवमहामिछाविठ्ठी अंतियपाउभुऐ। .., अर्थ-जिस रीतिसे अनंद ने श्रवण भगवंत श्री महाबीर स्वामी के पास में धर्म की उपसमीप अर्थात् बारह व्रत अंगीकार किय थे तिस रीति से ही कामदेव ने श्रावक के 12 वत अंगीकार किये सो कामदेव दर्शन प्रतिमा का अवग्रह लेकर विचरता था सो एक दिन कामदेव के पास अर्ध रात्रि के समय एक मिथ्या दृष्टि देवता पिशाच का रूप करके अनेक तरह के वाक्य बोला परन्तु मोमल मन्यासी के काष्ट की महपत्ती बंधी हुई कही तिस रीति से कामदेव श्रावक के वस्त्र की मुखपत्ती बांधी हुई न कही इस पाठ से मालूम होता है कि श्रावक ने भी मुखपत्ती न बांधी क्योंकि देखो कामदेव श्रावक पडिमा विषे बैठा था तो इस जगह ऐसा पाठ होता कि ( नथ्थमुदाय मुहबंधेइ ) ऐसा पाठ सत्र में नहीं इस लिये बुद्धिमानों की बद्धि में साफ मालम होता है कि पडिमा के विषे श्रावक मुख नहीं बांधा तो फिर बखाण आदिक में मुख बांध कर बैठना क्योंकर बनेगा।

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