Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 71
________________ - [ 64] जैन लिंग निर्णय // इसलिये जिन आज्ञा को साधो मुख बांधने से भागो मुंहपत्ती को जल्दी तोड़ो तागो जिससे मिले जैन धर्म सागा दुसरा और भी चलिनीपिता श्रावक का पाठ दिखाते हैं सत्र की शाख बताते हैं पोषटशाला में बैठे हुवे श्रावक का पाठ सुनाते हैं / ___ पाठः-- जावपोसहसालाए पोसहिएबंभयागसमणस्स भगवउमहावीरस्स अंतिएधम्मपन्नति उवसंपज्जिताणविह रह तएणं सेचुलणीपीयस्स पूवरत्तावरतकाल समयसि एगेदेवे पाउभ्भए / उपासक दशासूत्रमध्ये अध्येन 3 // अर्थ:-जिस वक्त पौषधशालाके विषे पोशा करके सहित ब्रह्म चर्य व्रतका धारण करनेवाला शुद्ध सम्यक्त सहित श्रवण भगवंतश्री माहावीर स्वामी की उपसंपदा लेकर विचरता हुवा ऐसा कौन चलिनी पिता श्रावक उसके पास मध्य रात्रि के समय एक देवता प्रगट हुवा इस जगह भी श्रावक को पोशा में भी मुख बांधने का न आया हमने तुमको चलिनी पिता श्रावक का सूत्र अनुसार पाठ बताया सरतवाले लवजी धर्मदास छीपा आदिने मुख बांधना चलाया जातिकुल के श्रावकों में मिथ्यात्व फैलाया बाइ और भाया का मुख बांधकर चहरे का नर गमाया इसीलिये हमने लिंग निर्णय बनाया सुरादेव श्रावक का तीसा पाठ याद आया सोभी दिखाते हैं / पाठः-जहाआणंदोतहेवपडिवज्जए जहावसमणस्प्लभ गवउमहावीरस्स धम्मपन्नतिविहरइ तएणंतस्ससुरादेवस्स समणोवासगस्स पूव्वरत्तावरतकाल समयंसि ऐगदेवतिय पाउ भविश्था उपासकंदमासत्र अध्येन 4 अर्थ:-जिस रीतिसे आनंद श्रावक ने घारह वत अंगिकार किये थे उस रीतिसे श्रवण भगवंत श्रीमाहावीर स्वामी के पास सुरादेव ने अगिकार किये फिर उस सुरादेवन दर्शन प्रतिमा का अविग्रह लेकर बिचरने लगा सो उस सगदेव श्रावक के पास

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