________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [65) आधीरात के समय एक देवता आया इस पाठ में भी मुख बांधने का जिक्र न आया इसी सूत्र के अध्येन 5 चल शतक श्रावक के पास भी देवता आया ग्रंथ बढजाने के भय से उस पाठ को न लिखाया तुमने फिर मुख बांधना कहांसे चलाया भांड का सा भेष जैनी नाम क्यों धराया मुग्ख बांधकर बैठने में तुमको लज्जा न आया क्यों तुमने पाखंड चलाया ओर भी इसी अध्यन में से कुंड कोलिया श्रावक का पाठ दिखाते हैं / तएणकंडकोलिए अणयाइ पुठवरत्तावरतकात मयंसि जेणेअसोगवाडिया जेणेवपुढवी सीलापट्टइ तेणेवउवागछइरता नामामुहगंच उत्तरिंगच पुढबीसीलापट्टए ठवेइरत्ता समणस्स भगवउमहावी रस्स अंतियंधम्मपन्नति उवसंपज्जित्ता तए. गंतस्तकंडकोलियस्स एगेदेवेअंतियंपाउभ्भविथ्था तरण सेदेवेनामुद्दगंच उत्तरिजवपुढवीसीलापट्टयउगणइ // अर्थः-कंडकोलिघू श्रावग एक दिन के समय मध्य रात्रि के विषे जहां तसागवाटी पृथ्वी में शिला रूप है इसजगह आय कर नाम अंकित मुद्रा और वस्त्र उतार कर पृथ्वी ऊपर रक्ख श्रवण भगवंत श्री महावीर स्वामी के पाम धर्म प्रजापति आंगिकार करक बिचरता हुवा तिप्त कुंड को लिये श्रावग के पास आया और उम देवताने नाम अकित मुद्रा और उतारे हुवे वस्त्र पथ्वी शिला पटसं लेकर घुघरा सहित वस्त्र पहिरेहुवे आकाश में खड़ा होकर कंडकोलिया से एमा कहने लगा कि अहो कुंड कोलिया गोशात के धर्म में बिना परिश्रम किये हुवे मोक्ष मिलती है इस रीति म कहा इसजगह श्रावग धर्म करनी में बैठाथा जो मुख बांध के बैठा होता तो सोमल सन्यामी के काष्ठ की मुंहपत्ती का सूत्र में पाठ था ऐमा इमजगह वस्त्र की मुखपत्ती का पाठ होता सो पाठ न आया तुमने मुख बांधना क्योंकर चलाया सूत्र के देखने से / गोशालेनेभी मुख बांधने का पंथ न चलाया इस सत्र के सातवें