Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 62
________________ - कुमतोच्छेदन भास्कर // [55 ] हैं कि जीव की रक्षा करने के अयं मख ढांककर बोल तो निर्वद्ध भाषा अन्यथा अर्थात मुख ढांक के भी जीव हिंसा का बचन बोलेतो सावद्धभाषा नतु मुख ढांकने से निर्वह भाषा होगी इस लिये भोले भाइयों इस जगह शक इद्र के उपयोग को लिया और यह कथन केवल शक इंद्र के आश्रय है नतु सब जीव आश्रय, कदाचित् सर्व जीके आश्रय मानोगे तो शक इदं के भाव सिद्ध आदिकछः बोल अच्छे कहेतो वे बोल सर्व जीवाश्रय मानन पडेंगे मो तुम मानोगे नहीं इस लिये यह कथन केवल शकइंद्र आश्रय नतु म जीवाश्रय इस लिये इस कदाग्रह को छोड़ो बात हमारी मानो तिस से हा तुम्हारा कल्यान, अब दूसरा सुनो प्रमाण कि उघाड़े मुख बोलने को तो हमभी नहीं कहते हैं क्योंकि देखो साध को तो हमेशा जब शब्द उच्चारण करे तर मख को ढक कर भाषा वर्गना निकाले और श्रावग लोग मंदिरजी में धर्म शाला में अथवा समायक प्रतिक्रमण पोसा दशाव गासी साधु के सनमख जो वचन उच्चारण करे सो मुख ढककर उपयोग सहित बोले उघाड़े मुख बोलने का उपदेश नहीं है कदाचित् जो तुम अपने हठ से मुख आच्छादन करके बोलने को न मानो और मुख बांधने से ही बोलने वाले की निर्वद्ध भाषाहै ऐसा मानोगे तो हम तुम को प्रत्यक्ष का प्रमाण देते हैं और उस की साक्षी विद्वज्जन दें उस का तो कहना ही क्या परंतु ग्रामीण लोग भी तुम्हार मुख बांधने को अच्छा न कहेंगे सोई दिखाते हैं कि एक मनुष्य तुम्हारे जैसा आठ पुरत के बदले 16 पुरत के कपड़े से मुख बांधे और किसी तम्हार श्रावक से कहे कि तु दुष्ट है और थाग बाप दुष्ट है और तरी मा व्यभिचारिणी है तेरी बहिन बेटी आदि दृष्टा हैं और तू बिन परिश्रम का द्रव्य ग्रहण करने की इच्छा रखता है इत्यादि अनेक रिति से कहे अथवा वह मुख बांधा हुवा शख्स कहै कि इस सर्प को मार डालो व कुत्त का मारडाला व बकरे को मण्डालो इत्यादिक मारने

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