________________ कुमतीच्छेदन भास्कर // [53 ] उन्मार्ग चलायेंगे जिन प्रतिमा का पूजना उठावेंगे जती के भेष को भंडा बताने बाज क्रिया करतागा में दुकान जमावगे हजारों स्त्री पुरुष को इकट्ठा कर मन कल्पित गाल बजाय कर लोगों को रिझायेंगे ढाल चे पाई ख्याल मांच की तरह दोहा छप्यय गीत वगैरह बखानों में सावेंगे सत्र का नाम नहीं ऊपर लीखी चीजों को दो चार मिलाकर रागनो बनावेंगे लगाइयों को भ्रमाय गृहस्थियों के माल खाय दुनियों में जावेंग इम रातिसे उस बगचलिया में मूल पाठ में लिखा है परंतु हमने ग्रंथ बढ़ जाने के भय से न लिखा इसी सूत्र की साक्षी देकर जीतमल तरह पथी ढूंढिया ने बाईस टोला के मध्य लिखा है और बाईन गोटीला पुरुषामें ही उतपत्ति बताई है सो उसकी बनाई हुई चरचा में देखा, दूसरे श्री आत्मारामजी सभेगीजी का किया हुवा सम्यकत्वसत्याहार ग्रंथ में देखा इसलिये है भाल भाइयों नबजी और धर्मदास छीपा आदि बिना गुरु के भेष लेकर इस मुख बांधने का मत चलाया जैन मत को लजा ग्राम गलियों में कुत्तों को भुसाया यह कुलिंग तुम्हारे मन क्यों कर भाया इतनी सुनकर ढुंढिया फिर कहने लगा की अजी पासता आदि पर ग्रह के रखने वाले छकाय के कुटा करने वाले होने से हमने शुद्ध मार्ग चलाया उत्तर भोदेवानुप्रिय पासता आदिक का होना तो हमभी अंगिकार करते हैं और शास्त्रकार ने भी उनकं बुरा कह्या साहो दिखाते हैं श्री उत्तराध्येनजी अध्येन 20 गाथा 43 // पाठः-कुसील लिंगंइहधारइसाइ सीज्जयं जीवीयबुह इत्ता असंजय संजयलप्यमाणाविणीधायमागवइसेचिरंपी // अर्थः-पासता कालिंग लोगों के विषे रजोहरण आदिक जती का चिन्ह लेकर आजीव का रूप पेट भगई करेंगे और असंजती पणे से फिरेंगे और कहेंगे हम जती हैं ऐसा कहते हुवे प्रवृत्तेंगे और अनेक विधिकरके पंडापावेगए ने द्रव्यागीपने कान्तक रजो -