Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 55
________________ [48] जैन लिंग निर्णय // हो सो औरों के गुण कू न देखना केवल मिथ्यात्व करना अच्छा नहीं उत्तर भादेवान प्रिय हमारी मिथ्यातर्क नहीं है छोड़ आभिमान समझ गुरु ज्ञान सूत्र का तुझे देते हैं प्रमाण श्रीनसीथ सूत्र उद्देशा 5 में प्रश्न 73 का में देखो इस प्रमाण को परखो अपनी मनो. कल्पित को ही मत टेको / पाठः-जेभिखरयहरणस्स परंती ऐहंबंधणं देइ देयंतं वातातिज्जइ // अर्थः-जो भिक्षुककहता माधु रजो हरण को तीन बंधन से उपरांत बंधन बांधे अथवा बांधता को भला जाने उमकू लघुमासिक प्रायश्चित्त भावे इस पाठ के अनुसार रजोहरण अर्थात् ओघाकू डोरा सिद्ध होगया परंतु मुंहपत्ती का डोरा कितने तागा का या कितना लंबा गेरना चाहिये इसलिये मालुम होता है कि जैन का साधु कू मुख बांधना नहीं तो सत्रमें डोरे की मर्यादाही क्योंकर लिखे इसलिये हे भोले भाइयो इस कदाग्रह को छोडो और बुद्धि का विचार करो मोहपत्ती मुख बांधने से मुख मोड़ो तब कोई मुख बांधने वाला कहने लगा कि ओघा के डोरा का आपने प्रमाण दिया परंतु चद्दर में डोरा किस जगह कह्या सो बतलाइये नाहक झगड़ा मत मचाइये हमारी पकड़ी बातको क्यों गमाइये हमने भी मुख बांधने की हृदय में हठ अमाइये उत्तर भोदेवान प्रिय ! ये मिथ्या तेरी तर्क हम निकासते हैं तेरे हृदय का फरक जिन आज्ञा न मानेगा तो मिलेगा तेरेको नरक। सूत्र नसीथ उद्देशा१प्रश्न ३२में लिखा है सोही दिखाते हैं व जेभीखुअप्पणोएग्गस अठाएसइज्जाइत्ता अणमणस्स अणुपदेह अणुपदेइतवासाइजइ 28 जेभीखपडिहारिय सुइ जाइत्ता वछसीवीसामी पायंसीवत्ती सीवंतवा साइज्जइ॥ / अर्थः-जो कोई साधु साध्वी अपने वास्ते अथवा दुसरे कोई | साधू के वास्ते सई मांगकर लावे अपने वा दूसरे के वास्ते गह- | -

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