Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 56
________________ कुमतोच्छेदन भास्कर // [4] स्थी से कहकर लावे उसके उपरान्त अन्य साधु साध्वी को आप दे अथवा कोई दूसरा ऊपर लिखी रीति से विपरीत अर्थात कहे कि उपरान्त अन्य को देते हुएको भला जाने इस उद्देशा के २८वें प्रश्न में लघप्रायश्चित आवे फिर भी जो कोई साध साध्वी पढिहारी (सूई) लाने वस्त्र सीने के वास्ते गृहस्थी से कहे कि में वस्त्र सीऊंगा ऐसा कहकर लाव फिर उम सई से वस्त्र सीने के बाद अथवा पहिले पात्र पर मुख मीचे अथवा सीवते को भला जाने तो लघुप्रायाश्चत आये गुरू मुख से वा सूत्र के अभिप्राय से मालम होता है कि चद्दर सीवने वास्ते सूई मांगे और चोलपटा सीवे वा चोलपटा के वास्ते मांगे और चदर सीधे तो प्रायश्चित आवे क्योंकि सर्वज्ञ की आज्ञा यही है कि जिस काम के वास्ते गृहस्थी से चीज मांग लावे उसी काम को कर उससे वैसाही करे तो उसको झूट लांग इसी वास्ते प्रायश्चित कहा है इसलिये हे भोले भाईयो! जब वस्त्र पात्र मीवने को कहा तो डोरा आप से आपही आगया तुम्हारा प्रश्न चादर में डोरे का था सो हो गया इसलिये हे भोले भाइयो ! हट को छोड़कर जिन आज्ञा को साधो अष्ट पहर मुंहपत्ती मुख पर मत बांधो इसके ऊपर मुख बांधने वाला फिर भी अपनी तर्क को उठाता है जरा भी नहीं शरमाता है अपनी बात गुमाता है और कहता है कि जब अष्ट पहर न बांधे तो इसको मुंह पत्ती क्यों कहा है इस. लिये हम कहते हैं कि महरत्तो कहने मे अष्ट पहर मुंह पर ही बांधना चाहिये उनर भा देवान प्रिय शास्त्र के बिदून किम बुद्धि रूप खाड़ में सुशब्दार्च निकाला मिथगत्व रूप भग के नशे में होरहा मतवामा अरे कुछ तो बुद्धि का विचार कर मुंहपत्ती कहने से अष्ठ पहा मुख पर बांधना अगिकार कंग्गा तो रजोहरण कहने से अष्ट पह! रज अर्थात धूला कचरा ही अष्ठ पहर निकालना चाहिय गनी गची में मकानों में मेहतरों की तरह हरदम कचरे को हरना चाहिये बैन जैसा लंबा पंछड़ा बगल में

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