Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 54
________________ कुमतोच्छदन भास्कर // [47] अर्थ:-तिसके बाद भरत राजाने शुभ शरीर का असारपना जानकर शुद्ध रूप शुद्धप्रणाम करके भले अदब साय से लेस्या उत्तर 2 परिणाम में भी शुड, मन करके निर्णय शरीर यहां अपाय करके गवेसना करता हुआ केवलज्ञान केवल दरशण आभरन भत चार गातीयां कर्मको क्षय करके जीव प्रदेसं सर्वघाती पुद्गल टाल करके आठ कर्म रूपी रजको विकरण अर्थात क्षय करणा ऐसा अनादि काल संसार के विषे पूर्व कदापि परिणाम नहीं आया इस अपूर्व करण शुक्ल ध्यान का दुसरापाया ध्यावता हुवा ऐसा अनुत्तर सर्व ज्ञान उत्तकृष्टा नीर व्याघात अंतर करके रहित समगपरमें प्रति पूर्ण सर्व आत्मक केवल नाम कहता प्रधान विशेष करके देखना सोतो ज्ञान और सामान प्रकार करके देखना सो दर्शन ऐसा केवल ज्ञान केदल दर्शन उतपन्न हुवा तिसके बाद भरत केवलीने अपना आभरण अर्थात् मुकुट कुंडल हारादिक अलंकार उतारता हुवा और अपना आपही पंच मुष्टी लोच करके आरसी अर्थात् काचका महल से निकलके अन्तः पुर के मध्यभाग अर्थात् रानियों के बीच में होके निकला फेर 1.... दम हजार मोटे राजाके संग परिवार सहित वनीता राजधानी के मध्यभाग होकरके निकला फिर मध्यदेश के विषे सुख पर्वक विचरते हुवे इस जगह सत्र के पाठ वा अर्थ में मुंह बांधने का नाम भी नहीं इसलिये शास्त्रों में कहा है कि जैनी को प्रथम विचार करके बोलना योग्य है आधिक ओछा बोलना योग्य नहीं जैनी नाम धरावे और मनोकल्पित बात करें जैनी नहीं वो फेनी है इसलिये तुमसे हमारा यही कहना है कि कुलिंग कू मिटायो सलिंग को धारण करो नहीं तो मोहपसी में डोरे का हाल बतलाइये क्यों नाहक झगडा मचाइये नाहक मिथ्यानुमति क्यों फैलाई है इस डोरे के पूछने से इन लोगों को उत्तर तो न बना परंतु अपनी धींगामस्ती करके कहने लगे कि आप मोहपत्ती के डोरा की बार बार पूछते हो परंतु आपभी तो बतलाइये कि ओघा | के ऊपर डोरा किस जगह है सो डोरा तो ओघा में तुमभी बांधते /

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