Book Title: Jain Ling Nirnay
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Page 50
________________ - M कुमतीच्छेदन भास्कर // [43 ] खेटीहै इसरीति से कई दफै सुननेसे उस देवतासे सोमल कहने लगा कि भो देवोंके प्यारे किस वास्ते मेरी दुष्ट प्रवृज्या है तब देवता सोमलऋषि से कहने लगा कि निश्वय हे देवताके प्यारे तुमने श्री पारश्वनाथ जी अरिहंतदेव पुरुषों में उत्तम पुरुषहँ तिसके पास पांच भनवत्ति सात सिक्षा वृत्ति दोनो बारह प्रकारका श्रावक धर्म आंगिकार किया था तिसके बाद तैंने एकदा समय में असाधु के दर्शन कर के एक समय कुटुंबका विचार किया और बाग लगाया तथा मूंड मुंडाया अथवा मुख बांधा इत्यादिक पिछली सर्व बातें कहीं और अशोक वृक्ष के नीचे ठहरा तावत् मौन करके ठहरा तिसके बाद पहली आधीरात के समय तेरे पास में आया और प्रगट होकर के और सोमल तेरी प्रवज्या दुष्ट अर्थात् खोटी है ऐसा निश्चय देवता अपना बचन कहै यावत् पांचवें दिन मायंकाल के समय उंबर नाम दरखत के नीचे यावत् काष्ट मुद्रासे मुखपर बांधकर के तू मौन में रहा तिस कारण से ये निश्चय हे देवता के प्यारे दुष्ट प्रवृज्याहे ऐसा देवता सोमल से कहने लगा जो तेरे को हे देवताके प्यारे अभी पूर्व में जैसे वत अंगीकार कराथा तैसेही पांच अनुवत और सात दोनों बारह प्रकारका श्रावकका अंगिकार करके जो तू बिचरेतो तेरी फिरकर के भली प्रवृज्या होय ऐसा सुन के बाद उस सोमल ब्राह्मण ऋषिने उस देवताके समीप अथ सुनके पहिलीतरह अंगीकार किये क्या पांच अनुक्त सात शिक्षा व्रत आपही। अंगिकार कर बिचरने लगा तिसके बाद उस देवताने भली प्रवृज्या अर्थात् अच्छी जान करके उस देवताने सोमल को बंदना नमस्कार करके जिस दिशा से आया था उसी दिशा पीछा गया तिसके बाद उस सोमल ब्राह्मण अर्थात ऋषिने उस देवता के कहने से पिछली तरह से अंगिकार किये तिसके बाद को सोमल नाम ब्राह्मण बहुत वत बेला तेला यावत मास अथवा अर्ध मास आदि नाना प्रकार की तपस्या करता हुवा अपनी आत्मा को भावतो हुवा इस गीते लेबिचरता हुवा साधु का उपासक अर्थात् सेवक हुवा श्रवनोपासक aareemadAairahanaiamerammarAhearthamariawarseur विन

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